Friday, 19 December 2025

“अरावली पर संकट: पर्वत खत्म हुए तो इतिहास भी मिट जाएगा—पन्नाधाय से प्रताप तक की विरासत खतरे में”


“अरावली पर संकट: पर्वत खत्म हुए तो इतिहास भी मिट जाएगा—पन्नाधाय से प्रताप तक की विरासत खतरे में”

अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने राजस्थान और विशेषकर मेवाड़ की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा पर्यावरणीय पहचान को लेकर गहरी चिंताएँ पैदा कर दी हैं। अदालत के निर्णय के अनुसार अब केवल 100 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पहाड़ ही ‘अरावली’ माने जाएंगे, जबकि 100 मीटर से कम ऊँचे पहाड़ों को संरक्षित पर्वतमाला का दर्जा नहीं मिलेगा। विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय पर्यावरण, जल संसाधनों, जैव-विविधता और राजस्थान के ऐतिहासिक अस्तित्व पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

ग्रीन बेल्ट सोसाइटी, राजसमंद के अध्यक्ष मधुप्रकाश लड्ढा ने अपने आलेख में इस फैसले पर गहरी आपत्ति जताते हुए लिखा कि 100 मीटर से नीचे के पहाड़ों को मानो सूली पर चढ़ाने का फरमान जारी कर दिया गया है। यह वही पहाड़ हैं जिनकी गोद में मेवाड़ का इतिहास पला-बढ़ा—जहाँ महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों ने मुगलों से संघर्ष किया और जिनकी वादियों ने राजपुताना के गौरव को सदियों तक सुरक्षित रखा। लड्ढा कहते हैं कि अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि मेवाड़ की धरोहर, प्रकृति का कवच और राजस्थान की जीवनरेखा हैं।

उन्होंने चेताया कि अरावली का विनाश सिर्फ पहाड़ खोने का संकट नहीं, बल्कि भविष्य में पन्नाधाय, बप्पा रावल या महाराणा प्रताप जैसी अदम्य वीरता को जन्म देने वाली धरती का नष्ट हो जाना है। अरावली ने सदियों तक तूफानों, रेतीली हवाओं और जलसंकट से प्रदेश की रक्षा की। यही पर्वत वर्षाजल को रोककर भूजल स्तर बढ़ाते हैं और हरियाली को जीवित रखते हैं। यदि ये पहाड़ खोद दिए गए तो राजस्थान सूखे, बंजर और पर्यावरणीय विनाश के अंधकार में धकेल दिया जाएगा।

लड्ढा ने खनन के बढ़ते दुष्प्रभाव का उदाहरण देते हुए कहा कि राजसमंद की खदानों में जहां कभी विशाल पहाड़ थे, वहाँ अब गहरी खाइयाँ और मृत धरती दिखाई देती है। उन्होंने चेतावनी दी कि चंद सिक्कों के लोभ में यदि अरावली का नाश हुआ, तो वन्यजीव, जल स्रोत और जलवायु का संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाएगा।

आलेख में उन्होंने समाज और सरकार से अपील की कि अरावली को बचाने के निर्णय पर पुनरिचार करते हुए पर्वतमालाओं को संरक्षित किया जाए, क्योंकि “खोदने से सिर्फ खाईयाँ बनती हैं, रास्ते नहीं।”

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