



अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर राजस्थान के बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा से विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की हालिया व्याख्या, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को “पर्वत” की श्रेणी से बाहर मानने की बात कही गई है, उस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।
विधायक भाटी ने पत्र में लिखा कि अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमाला है, जो लगभग 2.5 अरब वर्ष पुरानी मानी जाती है और राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली सहित उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन की रीढ़ है। अरावली की कुल लंबाई करीब 692 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में स्थित है। उन्होंने चेताया कि नई व्याख्या लागू होने से अरावली की लगभग 90 प्रतिशत पहाड़ियां कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएंगी, जिससे खनन, रियल एस्टेट और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों का रास्ता खुल सकता है।
भाटी ने कहा कि अरावली केवल भौगोलिक संरचना नहीं, बल्कि जैव विविधता, जल संरक्षण और मरुस्थलीकरण रोकने की प्राकृतिक दीवार है। यह वर्षा जल को संचित कर भूजल पुनर्भरण में अहम भूमिका निभाती है और पश्चिमी राजस्थान को रेगिस्तान बनने से बचाती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राज्य सरकार द्वारा घोषित ‘हरित अरावली विकास परियोजना’ और दूसरी ओर संरक्षण कमजोर करने वाली व्याख्याएं आपस में विरोधाभासी हैं।
पत्र में विधायक ने चार प्रमुख मांगें रखीं—अरावली की परिभाषा ऊंचाई नहीं बल्कि पारिस्थितिकी और भूवैज्ञानिक महत्व के आधार पर तय हो, 100 मीटर संबंधी व्याख्या पर पुनर्विचार हो, अरावली क्षेत्र में खनन व अवैध निर्माण पर सख्त नियंत्रण लगे और हरित अरावली परियोजना को जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की कि अरावली का संरक्षण केवल पर्यावरण नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा प्रश्न है और इस पर संवेदनशील व दूरदर्शी निर्णय लिया जाए।

