Wednesday, 19 November 2025

शेख हसीना को फांसी की सजा: बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल, भारत के लिए भी बढ़ी कूटनीतिक चुनौती


शेख हसीना को फांसी की सजा: बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल, भारत के लिए भी बढ़ी कूटनीतिक चुनौती

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर आया इंटरनेशनल क्राइम्स कोर्ट ट्रिब्यूनल (ICT) का फैसला भले ही चौंकाने वाला लगे, लेकिन क्षेत्रीय राजनीतिक हालात पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ इसे अपेक्षित मान रहे थे। ICT ने शेख हसीना, उनके पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून पर निर्णय सुनाया। हसीना और असदुज्जमां खान पर फांसी की सजा और अब्दुल्ला अल-ममून पर सरकारी गवाह बनने के आधार पर 5 साल जेल की सजा तय हुई।

शेख हसीना और असदुज्जमां खान पिछले 15 महीने से भारत में हैं। ऐसे में गंभीर प्रश्न यह है कि इन दोनों पर दी गई सजा कैसे लागू होगी, क्योंकि मामला सीधे-सीधे अंतरराष्ट्रीय कानून और प्रत्यर्पण संधि से जुड़ता है। ICT नाम से “अंतरराष्ट्रीय” दिखता है, लेकिन इसका कोई सीधा अंतरराष्ट्रीय वैधता संबंध नहीं है। दूसरी ओर, किसी देश में शरण लिए व्यक्ति को वापस भेजने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रत्यर्पण कानून, मानवाधिकार मूल्यांकन और राजनीतिक प्रतिशोध की संभावना जैसे मानक लागू होते हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि तो है, लेकिन उसे केवल पूरी तरह आपराधिक मामलों में लागू किया जाता है—राजनीतिक रंग वाले मामलों में यह लागू नहीं होता।

ध्यान देने वाली बात है कि शेख हसीना दक्षिण एशिया की सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली नेताओं में से हैं और 15 साल तक सत्ता में रहीं। उनके भारत आने के बाद बांग्लादेश में अब तक कोई निर्वाचित सरकार नहीं बनी है। उन्होंने भारतीय पत्रकारों से कहा था कि उनकी वापसी वहां की राजनीतिक स्थिरता पर निर्भर करेगी—जो फिलहाल बेहद अस्थिर है।

स्थिति तब और खराब हुई जब बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस ने पाकिस्तान के जनरल साहिर शमशाद मिर्जा को एक विवादास्पद नक्शा भेंट किया, जिसमें भारत के असम और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों को “विस्तारित बांग्लादेश” के रूप में दिखाया गया था। इससे पहले भी यूनुस ने चीन यात्रा के दौरान भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को “लैंडलॉक्ड क्षेत्र” बताकर अप्रत्यक्ष धमकी दी थी, जिसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने BIMSTEC के कनेक्टिविटी महत्व पर जोर देकर इसका जवाब दिया था।

इन हालात के बीच बांग्लादेश में कट्टरपंथ का उभार भी तेज हुआ है। ढाका के प्रतिष्ठित सोहरावर्दी गार्डन, जो स्वतंत्रता संग्राम और पाकिस्तानी सेना के समर्पण का प्रतीक रहा है, वहां यूनाइटेड खतमे नबुवत काउंसिल की एक कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें पाकिस्तान से आए 35 कट्टरपंथियों सहित पांच देशों के उग्रपंथी शामिल हुए। इस सम्मेलन में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने बांग्लादेश में ईशनिंदा कानून लागू करने और अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित करने की मांग उठाई।

इन सभी घटनाओं—ICT का फैसला, राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरता की बढ़ती पहल, और विवादित बयानों—ने बांग्लादेश को एक बार फिर हिंसा और अस्थिरता की ओर धकेल दिया है। ऐसे हालात में शेख हसीना की भारत में मौजूदगी लंबे समय तक जारी रह सकती है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कानून भी राजनीतिक शरण को मान्यता देता है।

बांग्लादेश में प्रस्तावित चुनावों में उनकी पार्टी को शामिल होने दिया जाएगा या नहीं—यही आने वाले समय में देश की दिशा और हसीना की भविष्य रणनीति को तय करेगा। फिलहाल स्थिति अनिश्चित, अशांत, और क्षेत्रीय कूटनीति के लिए जटिल बनी हुई है।

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