जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट में प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव पर लगे बैन को हटाने की मांग वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई। जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने जयराव व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि आखिर छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं कराए जा रहे हैं।
सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि छात्रसंघ चुनाव छात्रों का मौलिक अधिकार नहीं है। इस पर कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर यह मौलिक अधिकार नहीं है तो आप स्टूडेंट यूनियनों (एनएसयूआई, एबीवीपी) को ही बैन क्यों नहीं कर देते?” हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि जब देश में सांसद और विधायक के चुनाव हो सकते हैं, तो छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं कराए जा सकते। लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है, और अगर इस आधार पर चुनाव रोके जाएंगे तो लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का क्या औचित्य रह जाएगा। हाईकोर्ट ने मामले को 22 अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए।
जयराम की याचिका पर अधिवक्ता शांतनु पारीक ने कहा कि चुनाव कराए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कर्मचारी संघ और शिक्षक संघ के चुनाव कराए जा रहे हैं तो फिर विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव क्यों नहीं कराए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे 18 अगस्त को कोर्ट में ज्वांइडर लगाएंगे और 22 अगस्त को फाइनल निर्णय का आग्रह करेंगे।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष भारत भूषण ने भी सरकार से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग रखी है। उनका कहना है कि चुनाव कराए जाने के लिए सरकार के समक्ष यह मांग रखी जाएगी।
एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष विनोद जाखड़ ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने छात्र संघ चुनाव नहीं कराई तो सत्ता से चले गए।उन्होंने कहा कि प्रदेश मेंउनका छात्र संगठनचुनाव कराए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहा है। लोकतंत्र में छात्र संघ के चुनाव कराए जाने चाहिए जिससे कि नए छात्र निर्वाचित होकरनई राजनीति में प्रवेश कर सकें।
सरकार का पूर्व में रुख: इससे पहले राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा था कि प्रदेश की 9 विश्वविद्यालयों के कुलगुरुओं ने छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने की सिफारिश की है। इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन, शैक्षणिक सत्र और कक्षाओं के कार्यक्रम को कारण बताया गया था।
प्रदेश के 7 विश्वविद्यालय के कुलगुरु ने अपनी सिफारिश में उल्लेख किया था कि वर्ष 2023-24 में भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के कारण चुनाव नहीं करवाए गए। उनके अनुसार, छात्रसंघ चुनावों में वोटर टर्नआउट केवल 25 से 30 प्रतिशत तक ही रहता है, और चुनाव होने से परीक्षा परिणाम में देरी होती है, जिससे राज्य के छात्र अन्य राज्यों में प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ जाते हैं।