जयपुर। राजस्थान विधानसभा का चतुर्थ सत्र 1 सितंबर से शुरू हो रहा है। सत्र के दौरान सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा प्रश्नकाल माना जाता है, जिसमें विधायक सरकार से सीधे सवाल पूछते हैं और मंत्रियों को जवाब देना होता है। लेकिन हकीकत यह है कि विधानसभा में सवाल-जवाब की पारदर्शिता बेहद कमजोर है। पिछले तीन सत्रों में जितने तारांकित सवाल लगाए गए, उनमें से केवल 6 प्रतिशत सवालों के ही जवाब सदन में आए हैं। शेष 94 प्रतिशत सवालों के जवाब या तो गोलमोल देकर टाल दिए जाते हैं या डाक से विधायक आवास पर भेज दिए जाते हैं।
पिछले तीन सत्रों में 102 विधायकों ने 11 हजार से अधिक तारांकित सवाल पूछे। लेकिन मंत्रियों ने सदन में केवल 860 सवालों के ही जवाब दिए। रिकॉर्ड में जरूर कहा जाता है कि 94 प्रतिशत सवालों के जवाब आ गए हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि जनता के सामने सदन में चर्चा बेहद कम होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सदन में प्रत्यक्ष जवाब न आने से लोकतांत्रिक जवाबदेही प्रभावित होती है।
आंकड़े बताते हैं कि विधायकों द्वारा पूछे गए 90 प्रतिशत सवाल अपने क्षेत्र की जनता से जुड़े न होकर अन्य इलाकों या सामान्य मुद्दों से जुड़े रहते हैं। इन पर भी सरकार गोलमोल जवाब देकर खानापूर्ति कर देती है। जिन सवालों में सरकार को असहज करने की संभावना होती है, वे महज 1 प्रतिशत तक सीमित रहते हैं।
आगामी चतुर्थ सत्र के लिए अब तक 1183 सवाल लगाए गए हैं। इनमें से मात्र 9 सवाल ही ऐसे हैं, जिनसे विपक्ष सरकार या मंत्रियों को कठघरे में खड़ा कर सकता है। बाकी अधिकतर सवाल स्थानीय समस्याओं तक सिमटे हुए हैं। यह स्थिति साफ करती है कि सदन में प्रश्नकाल, जो जनता के लिए सबसे महत्वपूर्ण माध्यम होना चाहिए, धीरे-धीरे औपचारिकता भर बनकर रह गया है।