



17 दिसंबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘कैदियों के उपचार के लिए संयुक्त राष्ट्र के मानक न्यूनतम नियमों’ को संशोधित कर उन्हें नेल्सन मंडेला नियम नाम दिया। यह नाम उस महान व्यक्तित्व के सम्मान में रखा गया, जिन्होंने 27 वर्ष कारावास में बिताने के बावजूद मानवता, करुणा और समानता के मूल्यों को जीवित रखा। इन नियमों के लागू होने के एक दशक पूरे होने पर यह सवाल फिर उभरता है कि क्या हमारी जेलें केवल बंदी रखने की जगह हैं या वास्तव में सुधार और पुनर्वास के केंद्र बन पाई हैं।
नेल्सन मंडेला नियमों का मूल सिद्धांत है—हर बंदी को मनुष्य के रूप में सम्मान। किसी भी परिस्थिति में यातना, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार स्वीकार्य नहीं है। जेल प्रशासन की भूमिका केवल निगरानी तक सीमित नहीं, बल्कि बंदियों, स्टाफ और आगंतुकों की सुरक्षा व गरिमा सुनिश्चित करना भी है। नियम यह भी स्पष्ट करते हैं कि कारावास स्वयं में दंड है; जेल की परिस्थितियों को अतिरिक्त कष्टदायक बनाना अनुचित है। सजा का उद्देश्य प्रतिशोध नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा और बंदी का सुधार होना चाहिए। इसी कारण शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, रोजगार, आध्यात्मिक विकास और खेल को पुनर्वास का आधार माना गया है।
स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नियम एक प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। जेल में बंद व्यक्ति को वही निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं मिलनी चाहिए जो समाज में उपलब्ध हैं। HIV, टीबी, नशा-उपचार और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी गई है। प्रत्येक नए बंदी की मेडिकल जांच, तनाव या आत्महत्या के संकेतों की पहचान और समय पर उपचार अनिवार्य किया गया है, जिससे यह संदेश जाता है कि जेल की दीवारों के भीतर भी जीवन उतना ही मूल्यवान है।
एकांत कारावास पर नेल्सन मंडेला नियम ऐतिहासिक माने जाते हैं। 22 घंटे से अधिक मानवीय संपर्क से वंचित रखना एकांतवास और 15 दिन से अधिक रखना लंबा एकांतवास माना गया है, जिसे मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में रखा गया है। इसे केवल अंतिम उपाय के रूप में, सीमित अवधि और स्वतंत्र समीक्षा के अधीन ही लागू किया जा सकता है।
पारदर्शिता और जवाबदेही भी इन नियमों का अहम स्तंभ हैं। जेल में किसी भी बंदी की मृत्यु, गुमशुदगी या गंभीर चोट की सूचना तत्काल स्वतंत्र जांच एजेंसी को देना अनिवार्य है। साथ ही, रिहाई के बाद भी बंदी का पुनर्वास—रोजगार, पहचान और सामाजिक स्वीकार्यता—सरकार और समाज की साझा जिम्मेदारी मानी गई है, ताकि पुनः अपराध की ओर लौटने की आशंका कम हो।
भारत में इन नियमों को मॉडल प्रिजन मैन्युअल 2016 और मॉडल प्रिजन्स एंड करेक्शनल एक्ट 2023 में शामिल कर जेल सुधारों की स्पष्ट दिशा तय की गई है। राजस्थान कारागार विभाग ने भी ‘कृण्वंतो विश्वम आर्यम’ के ध्येय वाक्य को साकार करते हुए नए जेल नियम, ओपन एयर कैंप, कौशल विकास, जेल उत्पाद, ई-प्रिजन और वीडियो मुलाकात जैसी पहलों से इस वैश्विक सोच को व्यवहार में उतारने का प्रयास किया है। नेल्सन मंडेला नियमों के 10 वर्ष हमें यह याद दिलाते हैं कि जेलें केवल दीवारें नहीं, बल्कि परिवर्तन और पुनर्निर्माण की पाठशालाएं बननी चाहिए।
लेखक: पारस मल जांगिड, जेल अधीक्षक, विशिष्ट केंद्रीय कारागार श्यालावास, दौसा