



अजमेर। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर का त्रयोदश दीक्षांत समारोह गुरुवार को विश्वविद्यालय के सत्यार्थ सभागार में गरिमामय एवं भव्य वातावरण में आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे ने की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह विद्यार्थियों के जीवन में एक नए आरंभ का प्रतीक है। केवल उपाधि प्राप्त करना ही अंतिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि बौद्धिक क्षमता, नैतिक मूल्यों और राष्ट्र के प्रति दायित्वबोध का विकास भी उतना ही आवश्यक है। उन्होंने कहा कि समावर्तन संस्कार भारतीय शिक्षा परंपरा का अभिन्न अंग रहा है, जिसमें गुरु शिष्यों को सत्य के मार्ग पर चलने, धर्म का आचरण करने और शिक्षा पर अहंकार न करने की सीख देते थे।
राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री बागडे ने विभिन्न संकायों के 54 शोधार्थियों को विद्या वाचस्पति (पीएचडी) की उपाधि प्रदान की। इसके साथ ही वर्ष 2020 से 2025 के मध्य उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन करने वाले 2 विद्यार्थियों को कुलाधिपति पदक तथा वर्ष 2023, 2024 और 2025 में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले 40 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं विश्वविद्यालय गीत के साथ हुआ।
अपने संबोधन में राज्यपाल ने अजमेर के ऐतिहासिक महत्व का उल्लेख करते हुए बताया कि इसका प्राचीन नाम अजयमेरु था, जिसे चौहान शासक अजयराज ने बसाया था। उन्होंने महर्षि दयानंद सरस्वती को युगपुरुष बताते हुए कहा कि “वेदों की ओर लौटो” का उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने शिक्षा को व्यवहार से जोड़ने, चरित्र निर्माण, आत्मविकास, ब्रह्मचर्य, योग, प्राणायाम तथा वेद-उपनिषदों के अध्ययन पर बल दिया और मातृभाषा एवं संस्कृत में अध्ययन की प्रेरणा दी।
राज्यपाल बागडे ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे अपनी शिक्षा का उपयोग राष्ट्र निर्माण में करें और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प के अनुरूप वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र और विश्वगुरु बनाने में सक्रिय भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि बौद्धिक विकास का वास्तविक प्रमाण व्यक्ति के कार्य और व्यक्तित्व में झलकता है। साथ ही विद्यार्थियों को खेलकूद के माध्यम से शारीरिक रूप से सुदृढ़ बनने, नैतिकता अपनाने और पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण व उसके संरक्षण का संदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने बृहस्पति भवन के सामने स्थित दो उद्यानों का नामकरण “एक भारत श्रेष्ठ भारत विहार” एवं “संस्कृति विहार” करने की घोषणा भी की।
समारोह को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि दीक्षांत समारोह वह क्षण है, जब विद्यार्थियों के सपनों को औपचारिक मान्यता मिलती है। शिक्षा ही मानव को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उन्होंने तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में भारतीय ज्ञान परंपरा, नैतिक मूल्यों और संवेदनशीलता को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि यह समारोह भारत की प्राचीन शिक्षा परंपरा का गौरवशाली उदाहरण है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि उपाधि मंजिल नहीं, बल्कि उड़ान की शुरुआत है। बदलते समय में समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप नवाचार एवं अनुसंधान पर कार्य करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।