



राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अनुकंपा नियुक्ति इस शर्त पर प्राप्त करता है कि वह मृत कर्मचारी के परिवार का पालन-पोषण करेगा, तो वह इस जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता।
न्यायमूर्ति फ़रज़ंद अली की एकल पीठ ने यह आदेश देते हुए निर्देश दिया कि अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (एवीवीएनएल) में कार्यरत महिला कर्मचारी शशि कुमारी के वेतन से हर माह ₹20,000 की कटौती कर उसके ससुर भगवान सिंह के बैंक खाते में जमा की जाए।
याचिकाकर्ता भगवान सिंह की ओर से अधिवक्ता प्रियांशु गोपा और श्रेयांश रामदेव ने अदालत में कहा कि याची के पुत्र राजेश कुमार की वर्ष 2015 में सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी।
इसके बाद विभाग ने भगवान सिंह से अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन मांगा, लेकिन उन्होंने उदारता दिखाते हुए अपनी पुत्रवधू शशि कुमारी के नाम की सिफारिश कर दी। परिणामस्वरूप, शशि कुमारी को लोअर डिवीजन क्लर्क (LDC) के पद पर नियुक्त कर दिया गया।
नियुक्ति से पहले शशि कुमारी ने एक हलफनामा दिया था कि वह अपने सास-ससुर का पालन-पोषण करेगी, लेकिन बाद में उसने यह जिम्मेदारी निभाने से इंकार कर दिया। इसके चलते भगवान सिंह ने अदालत में गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर की और उसके वेतन का 50 प्रतिशत हिस्सा मांगा।
न्यायमूर्ति फ़रज़ंद अली की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि
“अनुकंपा नियुक्ति कोई अधिकार नहीं होती, बल्कि करुणा के आधार पर दी जाने वाली सहायता है, जो मृत कर्मचारी के पूरे परिवार की भलाई के लिए होती है, न कि केवल किसी एक व्यक्ति के लिए।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति इस शर्त पर नौकरी प्राप्त करता है कि वह परिवार का भरण-पोषण करेगा, उसे इस दायित्व का पालन करना ही होगा।
कोर्ट ने आदेश दिया कि शशि कुमारी के वेतन से हर माह ₹20,000 की राशि काटकर सीधे भगवान सिंह के बैंक खाते में जमा की जाए, ताकि उनके जीवन-यापन के लिए आर्थिक सहायता सुनिश्चित हो सके।