जस्टिस अनूप ढंड की पीठ ने स्कूल भवनों की सुरक्षा को लेकर कड़ी तल्ख़ टिप्पणियां करते हुए हालिया हादसे को “दिल झकझोर देने वाली घटना” बताया और कहा कि राज्य सरकार कुल बजट का लगभग 6% शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद बुनियादी ढांचे के विकास में लगातार पीछे है। अदालत ने रिकॉर्ड पर आए आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि एक सर्वे के मुताबिक राजस्थान सहित 12 राज्यों में संचालित करीब 22% स्कूलों की इमारतें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, जबकि 31% स्कूल भवनों में दरारें पाई गईं। न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि राजस्थान के लगभग 32% स्कूलों में बिजली उपलब्ध नहीं है, 9% में पीने के पानी की सुविधा नहीं और 9% में बॉयज़ टॉयलेट का अभाव है—जो छात्रों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक शिक्षण वातावरण पर सीधा प्रश्नचिन्ह है।
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए सभी शैक्षणिक संस्थानों (सरकारी व निजी) का व्यापक सुरक्षा सर्वे तत्काल कराने को कहा, ताकि जर्जर एवं असुरक्षित भवनों की पहचान कर समयबद्ध मरम्मत/ध्वस्तीकरण सुनिश्चित किया जा सके। जिला स्तर पर एक ऑनलाइन पोर्टल/वेबसाइट विकसित करने के निर्देश दिए गए, जहाँ अभिभावक और विद्यार्थी किसी भी स्कूल की जर्जर इमारत के फोटो-वीडियो अपलोड कर सकें। कोर्ट ने इन शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिए एक प्रभावी ‘निवारण तंत्र/फोरम’ स्थापित करने को भी कहा, जो शिकायत दर्ज होने के बाद निश्चित समय-सीमा में कार्रवाई की प्रगति सार्वजनिक रूप से अपडेट करे।
जवाबदेही को केंद्र में रखते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि घटिया निर्माण कराने वालों—चाहे वे ठेकेदार हों, अभियंता हों या संबंधित अधिकारी—की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जाए। ऐसी किसी भी दुर्घटना की स्थिति में निर्माण लागत की वसूली उनके जिम्मे हो तथा लापरवाही/कदाचार पर विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ आपराधिक मुकदमे भी दर्ज किए जाएं। अदालत ने साफ किया कि छात्र-छात्राओं की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है; इसलिए ‘कागज़ी सर्वे’ नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस सुधारात्मक कदम अपेक्षित हैं, और सरकारें समय-बद्ध रोडमैप के साथ अनुपालन रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें।