Friday, 26 December 2025

अरावली बचाओ अभियान के बीच पहाड़ों पर निर्माण की खुली छूट, सरकार ने जारी किए नियम, संरक्षण के दावे पर उठे गंभीर सवाल


अरावली बचाओ अभियान के बीच पहाड़ों पर निर्माण की खुली छूट, सरकार ने जारी किए नियम, संरक्षण के दावे पर उठे गंभीर सवाल

जयपुर। राजस्थान में एक ओर जहां सरकार अरावली बचाओ अभियान के तहत अरावली पर्वतमाला और उसके आसपास मौजूद छोटी-बड़ी पहाड़ियों के संरक्षण का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत इन दावों से मेल नहीं खा रही है। शहरी क्षेत्रों में स्थित पहाड़ों पर निर्माण को लेकर सरकार द्वारा जारी किए गए हिल बायलॉज अब संरक्षण से ज्यादा निर्माण को वैध बनाने का माध्यम बनते नजर आ रहे हैं। इन बायलॉज के तहत शहरी सीमा में आने वाले पहाड़ों को तीन श्रेणियों में बांटकर मकान, रिसोर्ट, फार्म हाउस और अन्य निर्माणों की अनुमति दी गई है।

सरकार के पुराने नियमों में लगभग 60 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्रों पर निर्माण की छूट थी। भाजपा सरकार ने नए हिल बायलॉज में इस दायरे को घटाने का दावा किया, लेकिन वास्तविकता यह है कि अब भी करीब 30 से 40 प्रतिशत पहाड़ों पर निर्माण की अनुमति बनी हुई है। पहाड़ी क्षेत्रों में फार्म हाउस, धार्मिक स्थल, योग-वेलनेस सेंटर जैसे निर्माणों के लिए अलग-अलग शर्तें तय की गई हैं, जिससे शहरी पहाड़ों पर दबाव लगातार बढ़ रहा है।

किस निर्माण के लिए कितनी जमीन जरूरी

8 से 15 डिग्री ढलान वाले पहाड़ों पर फार्म हाउस निर्माण के लिए न्यूनतम 5,000 वर्गमीटर भूमि आवश्यक है। इसमें अधिकतम 10 प्रतिशत (500 वर्गमीटर) क्षेत्र में ही निर्माण की अनुमति है और ऊंचाई 9 मीटर (ग्राउंड प्लस एक मंजिल) तक सीमित रहेगी।

‘बी’ श्रेणी के फार्म हाउस के लिए न्यूनतम 2 हेक्टेयर भूमि जरूरी है, जहां लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र में निर्माण की अनुमति दी जाती है।

धार्मिक स्थल, आध्यात्मिक केंद्र, योग केंद्र, चिकित्सा एवं वेलनेस सेंटर के लिए 8 से 15 डिग्री ढलान वाली पहाड़ी पर कम से कम 1 हेक्टेयर भूमि अनिवार्य है, जिसमें अधिकतम 15 प्रतिशत क्षेत्र में निर्माण किया जा सकता है।15 डिग्री से अधिक ढलान वाले क्षेत्रों को नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया गया है।

ढलान मापने का कोई स्पष्ट मानक नहीं

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने नियमों में संशोधन तो किया, लेकिन ढलान (स्लोप) मापने का कोई स्पष्ट और वैज्ञानिक मानक तय नहीं किया। A (0–8°), B (8–15°) और C (15° से अधिक) श्रेणियों में बांटने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं है कि ढलान की गणना किस तकनीक या किस पैमाने से की जाएगी। न तो किसी भरोसेमंद GIS-आधारित सर्वे की अनिवार्यता तय की गई है और न ही मिश्रित ढलान वाले पहाड़ों के लिए कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं।

विशेषज्ञ यह भी आशंका जता रहे हैं कि माइक्रो-लेवल कटिंग के जरिए ढलान को कृत्रिम रूप से कम दिखाकर निर्माण की अनुमति ली जा सकती है। ऐसे में नगरीय क्षेत्र में स्थित पहाड़ों के संरक्षण मॉडल विनियम-2024 वास्तव में संरक्षण से ज्यादा अनियंत्रित दोहन का रास्ता खोलते प्रतीत हो रहे हैं। अरावली बचाओ अभियान के बीच यह स्थिति सरकार के संरक्षण के दावों पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर रही है।

Previous
Next

Related Posts