



जयपुर। अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर जारी सियासी घमासान के बीच पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पर तीखा पलटवार किया है। गहलोत ने कहा कि भूपेंद्र यादव स्वयं राजस्थान से आते हैं, इसके बावजूद वे ‘संरक्षित क्षेत्र’ के नाम पर अरावली में केवल 0.19 प्रतिशत नई माइनिंग की अनुमति का दावा कर जनता को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जून 2025 में सरिस्का का संरक्षित क्षेत्र बदलकर खनन शुरू करने की कोशिश की गई थी और अब इसी ‘सरिस्का मॉडल’ को आगे चलकर पूरी अरावली पर लागू करने की तैयारी है।
गहलोत ने कहा कि भाजपा जनता को आंकड़ों के जाल में उलझाकर असली मंशा छिपाने का प्रयास कर रही है। अरावली की 100 मीटर ऊंचाई वाली नई परिभाषा को अकेले नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के दो अन्य बड़े फैसलों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। इन फैसलों से यह स्पष्ट होता है कि यह पर्यावरण संरक्षण का कदम नहीं, बल्कि संस्थाओं को कमजोर कर अरावली को खनन माफिया के हवाले करने की तैयारी है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करने वाली केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) को आखिर क्यों कमजोर किया गया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में पर्यावरण संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित इस समिति को केंद्र सरकार ने 5 सितंबर 2023 को जारी एक नोटिफिकेशन के जरिए पर्यावरण मंत्रालय के अधीन कर दिया। पहले CEC के सदस्यों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से होती थी, लेकिन अब सदस्यों के चयन का पूरा अधिकार केंद्र सरकार के हाथ में चला गया है।
गहलोत ने आरोप लगाया कि इस बदलाव के बाद CEC एक स्वतंत्र निगरानी संस्था न रहकर केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने वाली स्थायी सरकारी कमेटी बन गई है। इससे साफ है कि सरकार पर्यावरण की रक्षा नहीं, बल्कि अरावली जैसे संवेदनशील क्षेत्र में खनन का रास्ता साफ करना चाहती है। उन्होंने कहा कि अरावली राजस्थान का पर्यावरणीय सुरक्षा कवच है और इसके साथ किसी भी तरह का समझौता आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा।