



जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में शहरी निकाय चुनाव में हो रही देरी पर सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान में तय प्रावधानों से परे जाकर नगरपालिकाओं को प्रशासकों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता।
जस्टिस अनूप कुमार ढंढ की हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग आंखें मूंदकर मूकदर्शक नहीं बन सकता। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार हर 5 साल में चुनाव कराना अनिवार्य है। कार्यकाल पूरा होने के बाद अधिकतम 6 माह तक प्रशासक नियुक्त किए जा सकते हैं, लेकिन यह अवधि किसी भी हालत में आगे नहीं बढ़ाई जा सकती।
हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, राज्य निर्वाचन आयोग और भारत निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी कर इस मामले में जल्द से जल्द संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप कदम उठाने को कहा।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बिना निर्वाचित बोर्ड के नगरपालिका चलाने का कोई प्रावधान नहीं है। जुलाई में प्रशासकों की अवधि पूरी हो चुकी है, फिर भी एसडीओ प्रशासक के रूप में नियुक्त हैं, जो संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है।
हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 243 (U) का हवाला देते हुए कहा कि नगरपालिकाओं के चुनाव उनकी अवधि पूरी होने से पहले या फिर कार्यकाल खत्म होने के 6 माह के भीतर कराना अनिवार्य है।
गौरतलब है कि वर्ष 2021 में कुछ पंचायतों का नगरपालिकाओं में विलय किया गया था। उस समय चुने गए सरपंचों को संबंधित नगरपालिकाओं का चेयरमैन बनाया गया। लेकिन 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया और उनकी जगह एसडीओ को प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई थी।