अगरतला। भारतीय सनातन ज्ञान परंपरा का भंडार प्राचीन पांडुलिपियों में छिपा हुआ है। यदि इन पांडुलिपियों का व्यवस्थित अध्ययन और पठन-पाठन किया जाए तो समाज के कल्याण के लिए अनेक महत्वपूर्ण ज्ञान की बातें सामने आ सकती हैं। यह विचार केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, अगरतला के एकलव्य परिसर में आयोजित राष्ट्रीय पांडुलिपि विज्ञान कार्यशाला में आगंतुक वक्ताओं ने व्यक्त किए।
ज्ञान भारतम् मिशन: संरक्षण और डिजिटलीकरण का संकल्प: इस अवसर पर वक्ताओं ने बताया कि ज्ञान भारतम् मिशन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है। इसका उद्देश्य देशभर के शैक्षणिक संस्थानों, पुस्तकालयों, संग्रहालयों और निजी संग्रहों में संरक्षित एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण, संरक्षण और डिजिटलीकरण करना है। मिशन का लक्ष्य भारत की प्राचीन पांडुलिपि विरासत को सुरक्षित रखकर आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुलभ बनाना है।
कार्यशाला में देशभर से जुटे शोधार्थी: कार्यशाला के संयोजक एवं बौद्ध पाली भाषा विभागाध्यक्ष डॉ. उत्तम सिंह ने बताया कि यह पंद्रह दिवसीय कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के सहयोग से आयोजित की जा रही है। इसमें कुल 35 प्रतिभागी शामिल हैं, जो जेएनयू दिल्ली, पुरी (ओडिशा), उत्तराखंड, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, मणिपुर और कर्नाटक समेत विभिन्न राज्यों से आए हैं।
उद्घाटन समारोह: विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति: कार्यशाला का उद्घाटन राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली के निदेशक प्रो. अनिर्वाण दाश ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के साहित्य संकाय अधिष्ठाता प्रो. विनोद कुमार मिश्र, सारस्वत अतिथि के रूप में पुरी ओडिशा परिसर के निदेशक प्रो. प्रभात कुमार महापात्र और अध्यक्ष के रूप में अगरतला परिसर के निदेशक प्रो. मखलेश कुमार उपस्थित रहे।
उद्घाटन कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती के पूजन और वैदिक मंगलाचरण से हुई। अतिथियों का स्वागत पुष्पमालाओं और अंगवस्त्र से किया गया।
विद्वानों ने रेखांकित किया पांडुलिपियों का महत्व: समारोह में वक्ताओं ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में पांडुलिपियों का विशेष महत्व है। आज की आवश्यकता है कि उनके संरक्षण, संपादन और प्रकाशन की दिशा में ठोस प्रयास हों। इस दौरान राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की पहल को सराहते हुए इसे भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने का महत्त्वपूर्ण प्रयास बताया गया।