राजस्थान में एक बार फिर ‘भील प्रदेश’ की मांग ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत ने सोमवार को सोशल मीडिया के माध्यम से यह मांग पुरजोर ढंग से दोहराई। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की संस्कृति, बोली, भाषा और पहचान को सुरक्षित रखने के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को मिलाकर अलग "भील प्रदेश" का गठन आवश्यक है।
राजकुमार रोत ने कहा, "अगर सरकार वास्तव में आदिवासी हितैषी है, तो आदिवासी समाज की वर्षों पुरानी इस मांग को अब तक क्यों नहीं माना गया? आजादी से पहले भी इस मांग को लेकर कई बलिदान दिए गए, सबसे बड़ा उदाहरण मानगढ़ आंदोलन है, जिसमें गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1913 में 1500 से अधिक आदिवासी शहीद हुए थे। उनके बलिदान का सम्मान तभी होगा, जब ‘भील प्रदेश’ राज्य बनाया जाएगा।”
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद इस क्षेत्र को चार अलग-अलग राज्यों में बांटकर आदिवासी समाज के साथ अन्याय किया गया। इससे न केवल उनकी राजनीतिक भागीदारी कम हुई, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान भी संकट में पड़ गई। भील प्रदेश की मांग अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और पहचान की लड़ाई है।
BAP सांसद के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर #हमारी_मांग_भीलप्रदेश ट्रेंड करने लगा है। आदिवासी युवाओं और संगठनों ने इस मांग का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार से अलग भील प्रदेश गठन पर गंभीरता से विचार करने की अपील की है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आदिवासी वोट बैंक पर पकड़ बनाने के लिए यह मुद्दा आने वाले समय में और तीखा हो सकता है, खासकर मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे चुनावी राज्यों में। वहीं राज्य सरकारों और केंद्र की ओर से इस पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।