नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की ओर से उनके अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को कोर्ट में जोरदार दलीलें पेश करते हुए कहा कि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) का कर्ज चुकाना एक वैध कारोबारी निर्णय था। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश के प्रत्येक कॉर्पोरेट संस्थान की तरह एजेएल को भी अपना ऋण उतारने का अधिकार है और यंग इंडियन ने उसी प्रक्रिया के तहत 90 करोड़ रुपये का कर्ज उठाया, ताकि एजेएल को पुनर्जीवित किया जा सके।
डॉ. सिंघवी ने कहा कि यंग इंडियन एक गैर-लाभकारी कंपनी है, जिसके कोई लाभार्थी नहीं हैं और जिसके उद्देश्यों में न वेतन है, न बोनस और न ही लाभ का वितरण। उन्होंने कोर्ट में तर्क रखा कि एजेएल की संपत्ति आज भी वहीं है, उसका किसी को ट्रांसफर नहीं किया गया, इसलिए मनी लॉन्ड्रिंग जैसी धाराएं इस पर लागू नहीं होतीं। यदि यही कर्ज किसी टाटा या बिरला जैसे निजी समूह ने उठाया होता, तो क्या उनके खिलाफ भी मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया जाता?
डॉ. सिंघवी ने यह भी सवाल उठाया कि इस मामले की जांच किसी अधिकृत संस्था की शिकायत के बिना क्यों की जा रही है, जबकि याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी स्वयं इस प्रकरण में अधिकृत नहीं हैं। उन्होंने यह भी उजागर किया कि यंग इंडियन द्वारा यह लेन-देन 11 साल पहले हुआ और ईडी की जांच भी शिकायत के आठ साल बाद शुरू हुई, जो संदेहास्पद है।
दूसरी ओर, प्रवर्तन निदेशालय (ED) का आरोप है कि गांधी परिवार ने यंग इंडियन के माध्यम से AJL की लगभग 2000 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर कब्जा किया। एजेंसी के मुताबिक, AICC ने एजेएल को 90 करोड़ रुपये का कर्ज दिया और फिर यंग इंडियन ने 99% हिस्सेदारी हासिल कर कंपनी को नियंत्रित कर लिया।
ईडी का दावा है कि एजेएल घाटे में थी, और आमतौर पर ऐसी स्थिति में संपत्तियां बेची जाती हैं। लेकिन यहां पूरी कंपनी को सस्ते में हथियाने की साजिश रची गई और इसके पीछे सोनिया और राहुल गांधी थे। अब विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने सोनिया गांधी की दलीलों के बाद राहुल गांधी की सुनवाई सूचीबद्ध कर चुके हैं।
इस मामले में अब यह देखना होगा कि कोर्ट इस विवाद को केवल राजनीतिक मामला मानता है या वित्तीय धोखाधड़ी के दायरे में लाता है।