Saturday, 10 May 2025

नेटथियेट पर ‘सरूर-ए-ग़ज़ल’: जावेद हुसैन की मखमली आवाज़ ने ग़ज़लों की महफ़िल को किया रौशन


नेटथियेट पर ‘सरूर-ए-ग़ज़ल’: जावेद हुसैन की मखमली आवाज़ ने ग़ज़लों की महफ़िल को किया रौशन

जयपुर नेटथियेट की सांस्कृतिक श्रृंखला में शुक्रवार को ‘सरूर-ए-ग़ज़ल’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जावेद हुसैन ने अपनी दिलकश और मखमली आवाज़ में मशहूर शायरों की ग़ज़लें प्रस्तुत कर महफिल को सुरों की मिठास से सराबोर कर दिया।

कार्यक्रम संयोजक राजेन्द्र शर्मा ‘राजू’ ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत शायर सैयद हबीबुर रहमान नियाज़ी की ग़ज़ल "दिल लिया और मुकर गया कैसे, उल्टे इल्ज़ाम धर गया कैसे" से हुई, जिसने श्रोताओं की संवेदनाओं को छू लिया। इसके बाद मोहम्मद उस्मान आरिफ की "प्यार का जज़्बा नया रंग दिखा देता है" और चराग जयपुरी की "मेरे प्यार को भुला तो न दोगे कहीं, दोस्त बनकर दग़ा तो न दोगे" जैसी भावपूर्ण ग़ज़लों ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं।

कार्यक्रम के अंतिम चरण में जावेद हुसैन ने मिर्जा गालिब की प्रसिद्ध ग़ज़ल "कोई उम्मीद पर नहीं आती, कोई सूरत नजर नहीं आती" गाकर समां बांध दिया।

हाल ही में आकाशवाणी द्वारा ए-ग्रेड आर्टिस्ट के रूप में सम्मानित किए गए जावेद हुसैन संगीत की विरासत से ताल्लुक रखते हैं। वे प्रसिद्ध ग़ज़ल गायकों पद्मश्री अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन के परिवार से हैं।

कार्यक्रम में संगत देने वाले कलाकारों में वायलिन पर गुलज़ार हुसैन, कीबोर्ड पर रहबर हुसैन, हारमोनियम पर हीरेन्द्र कुमार भट्ट, गिटार पर बिलाल हुसैन और तबले पर शफात हुसैन ने अपनी कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

कार्यक्रम में इम्पीरियल प्राइम कैपिटल के कला प्रेमी मनीष अग्रवाल ने कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। आयोजन में कैमरा संचालन आलोक पारीक व मनोज स्वामी, संगीत संयोजन जितेन्द्र शर्मा, मंच सज्जा रेणु सनाढ्य, जीवितेश शर्मा व अंकित शर्मा नानू की रही।


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