राजस्थान सरकार ने अस्पतालों में उपचार के दौरान मरीज की मौत के बाद चिकित्सकों के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन और गिरफ्तारी की मांग को लेकर बड़ी कार्रवाई की है। अब ऐसे मामलों में फौरन गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। राज्य के गृह विभाग ने गुरुवार को नई स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जारी की, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि गंभीर मामले में भी डॉक्टर की गिरफ्तारी से पहले पुलिस अधीक्षक या पुलिस उपायुक्त से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
नई एसओपी के अनुसार, यदि मरीज की मौत के बाद चिकित्सकीय लापरवाही की आशंका जताई जाती है तो थानाधिकारी तुरंत FIR दर्ज नहीं करेगा, बल्कि पहले इसे रोजनामचे में दर्ज कर 14 दिन के भीतर प्रारंभिक जांच की जाएगी। इसके बाद स्वतंत्र विशेषज्ञ डॉक्टरों के पैनल से राय ली जाएगी और यदि प्रथम दृष्टया चिकित्सकीय लापरवाही सिद्ध होती है तभी मामला दर्ज होगा।
गृह विभाग की एसओपी के मुताबिक चिकित्सा संस्थानों की सुरक्षा के लिए भी व्यवस्था तय की गई है। अब थाना स्तर पर नियमित पेट्रोलिंग की जाएगी। यदि किसी अस्पताल में हिंसा की सूचना मिलती है तो 6 घंटे के भीतर एफआईआर दर्ज कर आरोपियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाएगी। अस्पताल का नोडल अधिकारी हिंसा की रिपोर्ट देगा, जिस पर पुलिस को त्वरित कार्रवाई करनी होगी।
यदि मौत चिकित्सकीय उपेक्षा के कारण होती है तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 194 के तहत पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। इससे जांच में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी।
एसओपी में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी घटना के विरोध में चिकित्साकर्मी कार्य बहिष्कार नहीं कर सकेंगे। वे अपनी बात कानून सम्मत तरीके से राज्य सरकार के सामने रख सकेंगे, लेकिन मरीजों की सेवा बाधित नहीं होगी।
गृह विभाग ने यह भी माना है कि कई बार आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर डॉक्टरों पर झूठे मुकदमे दर्ज हो जाते हैं, जिससे मानसिक तनाव और पेशेवर प्रतिष्ठा को क्षति होती है। नई SOP ऐसे मामलों को रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
यह SOP केन्द्र सरकार की नेशनल टास्क फोर्स की सिफारिशों पर आधारित है और इसे गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद कुमार द्वारा जारी किया गया है।