राजस्थान हाईकोर्ट ने समरावता हिंसा मामले में आरोपी नरेश मीणा की जमानत याचिका खारिज कर दी। जस्टिस प्रवीर भटनागर की अदालत ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अपराधियों को जमानत का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए, ताकि समाज में यह संदेश जाए कि अपराध करने वाले राजनीतिक व्यक्तियों का सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है।
यह मामला राजस्थान में हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान समरावता गांव में हुई हिंसा से जुड़ा है। स्थानीय ग्रामीण तहसील मुख्यालय बदलने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे और उन्होंने मतदान का बहिष्कार किया था।एसडीएम जबरन वोट डलवाने की कोशिश कर रहे थे, जिस पर याचिकाकर्ता (नरेश मीणा) की उनसे धक्का-मुक्की हो गई थी।इसके बाद गांव में आगजनी और हिंसा भड़क उठी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डॉ. महेश शर्मा ने तर्क दिया कि:नरेश मीणा ने किसी भी तरह की आगजनी या हिंसा में भाग नहीं लिया था। घटना के समय वह पुलिस हिरासत में था, इसलिए उसका कोई सीधा संबंध नहीं बनता।गांव में पहले से ही आंदोलन चल रहा था, और पुलिस ने गलत तरीके से उन्हें फंसाया।
राज्य सरकार की ओर से एएजी (अतिरिक्त महाधिवक्ता) राजेश चौधरी ने तर्क दिया कि आरोपी ने लोगों को हिंसा के लिए उकसाया था।पुलिस के पास ऐसे वीडियो मौजूद हैं, जिनमें वह भीड़ को भड़काते हुए देखा जा सकता है।घटना में 27 पुलिसकर्मियों को चोटें आईं और 42 वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। घटना की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी।कोर्ट ने कहा कि आरोपी जमानत का अधिकारी नहीं बनता है, क्योंकि उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं।अदालत ने यह भी कहा कि राजनीतिक अपराधियों को जमानत से वंचित रखना ही न्यायोचित है, ताकि समाज में सही संदेश जाए।
नरेश मीणा को अब निचली अदालत में या सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए अपील करनी होगी।पुलिस इस मामले में आगे की जांच कर रही है और अन्य आरोपियों की भी तलाश जारी है।सरकार इस केस को एक मिसाल के रूप में पेश कर सकती है, ताकि चुनावी हिंसा पर सख्त कार्रवाई हो।