Monday, 31 March 2025

खेती-बाड़ी के साथ-साथ मछली पालन से आएगी संपन्नता, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से समृद्ध हो रहे किसान, ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया जारी


खेती-बाड़ी के साथ-साथ मछली पालन से आएगी संपन्नता, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से समृद्ध हो रहे किसान, ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया जारी

टोंक प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के विकसित भारत संकल्प-2047 को साकार करने एवं किसानों एवं पशुपालकों को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की ओर से प्रारंभ की गई प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाय) के तहत प्रदेश के किसान समृद्ध हो रहे हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में राज्य सरकार प्रदेश में लगातार मत्स्य पालन को बढ़ावा दे रही है। इससे किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया आयाम मिलेगा। इस योजना के तहत मछली पालन को एक लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए सरकार आर्थिक सहायता और आधुनिक तकनीकों को प्रोत्साहित कर रही है। इच्छुक एवं पात्र व्यक्ति योजना के तहत अनुदान लाभ के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

प्रदेश में कृषि और पशुपालन प्रमुख व्यवसाय हैं। लेकिन, अब मत्स्य पालन एक नए और फायदे वाले व्यवसाय के रूप में तेजी से उभर रहा है। राज्य के जलाशयों, नहरों, तालाबों और कृत्रिम जल स्त्रोतों के माध्यम से मछली पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस योजना के तहत किसानों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और नई तकनीकों से परिचित कराया जा रहा है, जिससे वे कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।

क्या है प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना

जिला मत्स्य विकास अधिकारी मेघचंद मीणा ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाय) को वर्ष-2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रारंभ किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में मत्स्य उत्पादन, मछुआरों कृषकों की आय और मछली उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना है। प्रदेश में योजना के तहत छोटे और सीमांत किसानों को मत्स्य पालन गतिविधियों के लिए विभाग द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। राज्य सरकार भी इस योजना को प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार के सहयोग से विभिन्न कदम उठा रही है। विभिन्न जिलों में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए तालाब निर्माण, जैव फ्लॉक तकनीक, रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाया जा रहा है।

योजना के तहत मिलने वाले लाभ

जिला मत्स्य विकास अधिकारी ने बताया कि योजना का लाभ लेने के लिए मछुआरा समुदाय, मत्स्य पालक, मछली विक्रेता, स्वयं सहायता समूह, मत्स्य सहकारी समितियां, निजी फर्म, फिश फार्मर प्रोड्यूसर संगठन कंपनियां अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग एवं महिलाएं आवेदन कर सकती है। उन्होंने बताया कि योजना के तहत सामान्य वर्ग के लोगों को इकाई लागत का अधिकतम 40 प्रतिशत एवं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला लाभार्थियों को इकाई लागत का अधिकतम 60 प्रतिशत अनुदान राशि डी.बी.टी. के माध्यम से देय होगी। लाभार्थी को शेष राशि की व्यवस्था स्वयं के स्तर से अथवा बैंक ऋण लेकर करनी होगी। लाभार्थी को देय अनुदान राशि दो या तीन किस्तों में दी जाएगी।

आवेदन ई-मित्र अथवा स्वयं के माध्यम से ऑनलाइन भरे जा सकते है। आवेदक की स्वयं की जमीन होना है आवश्यक

मीणा ने बताया कि परियोजना प्रस्ताव के साथ आवेदक को स्वयं की जमीन की उपलब्धता के दस्तावेज प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। योजना के लिए पट्टे पर जमीन लेने की स्थिति में इंफास्ट्रक्कर परियोजना के लिए न्यूनतम 10 वर्ष की पट्टा अवधि एवं शेष परियोजनाओं के लिये 7 वर्ष से कम की पट्टा अवधि मान्य नहीं होगी। किसी भी परियोजना के लिये जमीन क्रय करने अथवा लीज पर लेने के लिए कोई अनुदान राशि नहीं दी जाएगी। परियोजना के लिए प्रस्तावित जमीन विवादित नहीं होनी चाहिए। योजना के मुख्य कम्पोनेंट्स, इनकी इकाई लागत एवं देय अनुदान राशि के विवरण के लिए मत्स्य विभाग की वेबसाइट अथवा जिला कार्यालय टोंक में संपर्क किया जा सकता है।

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