दिवाली के शुभ अवसर पर कंद फल, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में सूरन, जिमीकंद या ओल भी कहा जाता है, खाने की परंपरा का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रथा सिर्फ धार्मिक मान्यता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी छिपा है। पहले के समय में जब सब्जियों के विकल्प सीमित थे, विशेष प्रकार की सब्जियों और मसालों का उपयोग खास अवसरों पर किया जाता था, जैसे कि दिवाली पर कंद फल की सब्जी।
दिवाली के खास मौके पर कंद फल, जिसे सूरन, जिमीकंद या ओल भी कहा जाता है, खाने की परंपरा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता से जुड़ी इस परंपरा के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हैं। प्राचीन समय में जब सब्जियों का चयन सीमित होता था, तब खास त्योहारों पर ऐसे फायदेमंद मसाले और सब्जियां बनाई जाती थीं। दिवाली के दिन कंद फल की सब्जी का सेवन हमारे पूर्वजों द्वारा वैज्ञानिकता और स्वास्थ्य लाभों को ध्यान में रखकर किया गया एक महत्वपूर्ण परंपरागत अभ्यास है।
कंद फल फास्फोरस का प्रचुर स्रोत है, जो हड्डियों और कोशिकाओं के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा, इसमें फाइबर, विटामिन सी, बी6, बी1 और फोलिक एसिड की भरपूर मात्रा होती है। पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम जैसे मिनरल्स भी सूरन में पाए जाते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाए रखते हैं। इसे एक बार साल में खा लेने से महीनों तक शरीर में फास्फोरस की कमी पूरी हो सकती है।
सूरन का सेवन बवासीर, कब्ज, और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव में सहायक माना गया है। इसमें मौजूद पोषक तत्वों के कारण इसे साल में एक बार अवश्य खाना चाहिए ताकि शरीर स्वस्थ और रोगमुक्त रह सके।
हमारे पूर्वजों ने त्योहारों में विज्ञान और स्वास्थ्य को शामिल किया है, जिसका उदाहरण दिवाली पर कंद फल खाने की परंपरा है। यह प्राचीन मान्यता न केवल शरीर के लिए लाभकारी है, बल्कि भारतीय संस्कृति की समृद्धता और गहन वैज्ञानिकता को भी प्रदर्शित करती है।
डॉ.पीयूष त्रिवेदी, आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ, जयपुर
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