दही के लाभदायक तत्व ओर बैक्टीरिया नमक मिलाकर खाने से नष्ट हो जाते हैं ,जिससे दही खाना कम फायदा करता है । रात्रि में दही नहीं खाते हैं ,लेकिन रायता में सब्जी मिलाकर काला नमक गुड़ शक्कर मिलाकर खाने से फायदा होता है। जबकि शक्कर और गुड़ मिलाकर दही अधिक फायदा करता है ।
दही अनुपान के बारे में चरक संहिता में पूरा एक अध्याय दिया गया है। रात को मीठा या नमकीन दही खाने का निषेध है और दिन में भी नमकीन दही में चार गुना सादा जल मिलाकर लेने की सलाह दी गई है।
मीठे दही को मधुर पाचक बताया है और नमकीन दही गरिष्ठ होता है, जो आसानी से पचता नहीं है और एसिडिटी, त्वचा रोग पैदा करता है।
आयुर्वेद में
चरकसंहिता अध्याय ७/ ६५ में निम्न उद्धरण मिलता है:
आहाराचारचेष्टासु सुखार्थी प्रेत्य चेह च!
उन्होंनेपरं प्रयत्नमातिष्ठेद् बुद्धिमान् हितसेवने॥ ६० ।।
न नक्तं दधि भुञ्जीत न चाप्यघृतशर्करम्।
नामुद्गसूपं नाक्षौद्रं नोष्णं नामलकैर्विना ॥६१॥ (अलक्ष्मीदोषयुक्तत्वान्नक्तं तु दधि वर्जितम्।
श्लेष्मलं स्यात्ससर्पिष्कं दधि मारुतसूदनम् ॥ ६२ ॥
न च संधुतयेत्पित्तमाहारं च विपाचयेत्।
शर्करासंयुतं दद्यात्तृष्णादाह निवारणम्।। ६३।।
मुद्गसूपेन संयुक्तं दद्याद्र तानिलापहम्।
सुरसं चाल्पदोषं च क्षौद्रयुक्तं भवेदधि।
उष्णं पित्तास्रकृद्दोषान् धात्रीयुक्तं तु निर्हरेत् ॥ ६४ ॥ ज्वरासृक्पित्तवी सर्पकुष्ठपाण्ड्वामयभ्रमान् ।रेसिपी
प्राप्नुयात्कामलां चोग्रां विधिं हित्वा दधिप्रियः) || ६५ ॥
अर्थात इहलोक और परलोक में सुख चाहने वाले बुद्धिमान् व्यक्ति को हितकारी आहार, खान पान, आचार वर्त्तन और चेष्टा क्रियाओं को करने वालों को चाहिये कि इन में विशेष रूप से यत्नवान् रहे ।
रात्रि में दही नहीं खानी चाहिये, और रात के सिवाय अन्य समय में जब खानी हो तब भी घी या शक्कर के बिना, मूंग की दाल के बिना, शहद के बिना, गरम किये बिना, अथवा आंवले के बिना नहीं खानी चाहिये।
जब खानी हो तो घी, मूंग, शहद, आंवला, इनके साथ या गरम करके पीये। रात को तो किसी भी प्रकार से नहीं खानी चाहिये।
खाने से शरीर की श्लेष्मा और स्वास्थ्य नष्ट होकर के दोष कुपित होते हैं । दही में घी मिलाने से दही कफ की वृद्धि करता है, परन्तु वायु का नाश करती है। अब विस्तार से इसको यों समझते हैं,
दही जमने की प्रक्रिया उसमें मिलाए हुए जामन की वजह से शुरू होती है और जब पूरा दही जम जाता है वो खाने योग्य होता है । अब दही मिलकर जब तैयार होता है तो वह हमारी पाचन तंत्र को मदद रूप हो ऐसे सूक्ष्म एक कोशीय जीवो से खचाखच भरा होता है उनकी ज्यादा वृद्धि होने पर ये दही खट्टा हो जाता है तो फिर वो बहुत अधिक मात्रा भी हमारे पाचन तंत्र को मदद कम और हानि ज्यादा करती है इस लिए पुराने दही हो नमक मिलाके या गर्म करके उसमें इन जीवों की वृद्धि रोकी जाती है फिर इस्तेमाल करते है पर ताजा दही तो उसमे मौज़ुद ये डाइजेशन फ्रेंडली बैक्टीरिया का बहुत फायदे के लिए बेहतर होगा कि उसमे गुड या मिठास मिलाए क्योंकि उसकी वजह से शरीर में पहुंचने तक डाइजेशन फ्रेंडली अच्छे वाले बैक्ट्रिया की वृद्धि होगी और आपका हाजमा बिल्कुल मस्त काम करेगा पर उसमें जब नमक मिलाया जाता है तो नमक की एंटी बैक्टेरियल ताकत की वजह से अच्छे वाले बैक्टीरिया खत्म हो जाते है और दही से होने वाले विशेष लाभ नही मिल पाते । तो अब दही खाओ तो उसमे ताजे ताजे दही में मिठास घोलकर खाए । ना कि जहरीला नमक ।
डॉ. पीयूष त्रिवेदी आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी राजस्थान विधान सभा जयपुर।