



प्रदेश से गुजर रही अरावली पर्वतमाला को लेकर विवाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच गया है। हरियाणा के वन विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी आर.पी. बलवान ने केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति की उस सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें अरावली पर्वतमाला को खनन के संदर्भ में केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों तक सीमित मानने की बात कही गई है। याचिका में कहा गया है कि यह परिभाषा अरावली के बड़े भू-भाग को कानूनी संरक्षण से बाहर कर देगी, जिससे पर्यावरणीय संतुलन पर गंभीर असर पड़ेगा।
प्रार्थना पत्र पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार, हरियाणा सरकार, केन्द्र सरकार तथा केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी किए हैं। पूर्व वन संरक्षक आर.पी. बलवान ने यह प्रार्थना पत्र सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित ऐतिहासिक गोदावर्मन वन संरक्षण मामले में दाखिल किया है, जिससे इस याचिका का महत्व और बढ़ गया है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय की समिति द्वारा दायर शपथपत्र में भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा सुझाई गई “3 डिग्री ढलान” की परिभाषा को नजरअंदाज किया गया, जबकि वह अधिक वैज्ञानिक और व्यावहारिक मानी जाती है। इसके बावजूद समिति ने 100 मीटर ऊंचाई की सीमा को आधार बनाया, जो अपने आप में विरोधाभासी है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस तरह की सीमित परिभाषा से अरावली के कई पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र खनन और अतिक्रमण के लिए खुल सकते हैं।
आर.पी. बलवान ने अदालत को बताया कि अरावली पर्वतमाला गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैली हुई है और थार रेगिस्तान तथा उत्तरी मैदानों के बीच एक प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करती है। यदि केवल 100 मीटर ऊंचाई को ही अरावली माना गया, तो इसका बड़ा हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएगा, जिससे जल-स्रोतों, जैव विविधता और स्थानीय जलवायु पर दूरगामी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल एक तकनीकी विवाद नहीं है, बल्कि उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरणीय भविष्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है और अब शीतकालीन अवकाश के बाद इस महत्वपूर्ण मामले में आगे की सुनवाई की जाएगी। पर्यावरण विशेषज्ञों की नजर इस सुनवाई पर टिकी हुई है, क्योंकि इसका असर राजस्थान और हरियाणा में खनन गतिविधियों की दिशा तय कर सकता है।
गौरतलब है कि अरावली पर्वतमाला का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान से होकर गुजरता है, ऐसे में सबसे अधिक राजनीतिक और सामाजिक हलचल भी यहीं देखने को मिल रही है। कांग्रेस और पर्यावरण से जुड़े कई संगठनों ने “सेव अरावली” अभियान चला रखा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली सहित विपक्षी नेता राज्य की भाजपा सरकार पर अरावली को नष्ट करने के आरोप लगा रहे हैं। वहीं सत्ता पक्ष, जिसमें केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा शामिल हैं, विपक्ष पर भ्रम फैलाने का आरोप लगा रहा है।
कुल मिलाकर, अरावली पर्वतमाला को लेकर कानूनी, पर्यावरणीय और राजनीतिक मोर्चों पर टकराव तेज हो गया है और सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला इस पूरे विवाद की दिशा तय करेगा।