Monday, 29 December 2025

फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र मामला: भाजपा विधायक की बेटी नायब तहसीलदार कंचन चौहान एपीओ


फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र मामला: भाजपा विधायक की बेटी नायब तहसीलदार कंचन चौहान एपीओ

ख़बर सुनिए:

0:00
0:00
Audio thumbnail

अजमेर। राजस्थान के ब्यावर से भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी और आरएएस-2018 बैच की अधिकारी कंचन चौहान के खिलाफ फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र के गंभीर आरोपों के बाद प्रशासनिक कार्रवाई की गई है। भीलवाड़ा जिले के करेड़ा में नायब तहसीलदार के पद पर तैनात कंचन चौहान को एपीओ (अटैच्ड पोस्टिंग ऑर्डर) कर दिया गया है। अब उन्हें अगले आदेश तक राजस्व मंडल राजस्थान, अजमेर में उपस्थिति दर्ज करानी होगी। यह आदेश मंगलवार शाम को जारी किया गया।

यह कार्रवाई ब्यावर निवासी फणीश कुमार सोनी की शिकायत के बाद की गई है। फणीश कुमार सोनी ने 12 अगस्त को मुख्यमंत्री और आरपीएससी को शिकायत देकर आरोप लगाया था कि कंचन चौहान ने फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र के आधार पर आरएएस सेवा में नियुक्ति प्राप्त की। शिकायत सामने आने के बाद राज्य सरकार के निर्देश पर मामले की जांच शुरू की गई और प्रशासनिक कारणों से उन्हें एपीओ किया गया।

शिकायतकर्ता ने उठाई दोबारा मेडिकल जांच की मांग

शिकायतकर्ता फणीश कुमार सोनी ने कहा कि जांच के दौरान आगे और भी महत्वपूर्ण तथ्य व सबूत सामने आ सकते हैं। उन्होंने सरकार की ओर से की जा रही जांच पर संतोष जताते हुए निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद की है। साथ ही उन्होंने कंचन चौहान की दोबारा मेडिकल जांच कराने की मांग की है। शिकायतकर्ता का कहना है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए, ताकि निष्पक्षता बनी रहे। इसके अलावा कंचन चौहान के नवोदय विद्यालय और उदयपुर विश्वविद्यालय से जुड़े शैक्षणिक व चिकित्सीय दस्तावेजों की भी विस्तृत जांच की मांग की गई है।

2013 और 2016 में असफल, 2018 में मिली सफलता

जानकारी के अनुसार, कंचन चौहान ने 2018 में आरएएस परीक्षा दी थी, जिसमें इंटरव्यू के बाद उन्हें लगभग 600वीं रैंक प्राप्त हुई और वे चयनित हुईं। इससे पहले उन्होंने 2013 और 2016 में भी आरएएस परीक्षा दी थी, लेकिन उन दोनों प्रयासों में उन्हें सफलता नहीं मिली थी। उनकी पहली पोस्टिंग 27 दिसंबर 2021 को भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा में नायब तहसीलदार के रूप में हुई थी। इसके बाद वे करीब एक वर्ष से अधिक समय से करेड़ा में पदस्थापित थीं।

फिलहाल, इस मामले में जांच जारी है और प्रशासनिक स्तर पर आगे की कार्रवाई जांच रिपोर्ट के आधार पर तय की जाएगी। यह मामला न केवल प्रशासनिक सेवा में पारदर्शिता बल्कि आरक्षण और दिव्यांगता प्रमाणपत्रों की सत्यता से जुड़े बड़े सवाल भी खड़े कर रहा है।

Previous
Next

Related Posts