



राजस्थान के 309 नगर निगमों व नगर पालिकाओं में मेयर और सभापति के सीधे जनता द्वारा चुनाव की व्यवस्था लागू करने को लेकर जारी कवायद फिलहाल अधर में अटक गई है। दो महीने तक मंत्री स्तर पर विधायकों, मंत्रियों और पार्टी नेताओं से रायशुमारी की गई। मुख्यमंत्री से भी डायरेक्ट चुनाव को लेकर प्रारंभिक हरी झंडी मिल चुकी थी, लेकिन आधे नेताओं ने इस व्यवस्था का विरोध किया, जबकि लगभग 40 प्रतिशत नेताओं ने समर्थन दिया।
इसी बीच मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए मंगलवार को विधानसभा में नगर पालिका संशोधन विधेयक 2025 पारित कर दिया, जिसमें मेयर-सभापति के डायरेक्ट चुनाव की व्यवस्था को मंजूरी दी गई है। एमपी में निकाय चुनाव 2027 में होने हैं, लेकिन उससे दो वर्ष पहले ही कानून पारित कर दिया गया है।
राजस्थान में कई नगर निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और प्रशासक नियुक्त किए जा रहे हैं। इसी दौरान डायरेक्ट चुनाव को लागू करने की कवायद शुरू हुई थी। लेकिन स्पष्ट नीति तय न होने से प्रक्रिया अटक गई। सूत्रों का कहना है कि अंतिम निर्णय के लिए पिछले 15 दिनों में दो बार दिल्ली में हाईकमान से राय लेने के लिए नेता पहुंचे। निर्णय पूरी तरह दिल्ली की सहमति पर निर्भर है।
यदि केंद्र से हरी झंडी मिलती है तो राजस्थान कैबिनेट प्रस्ताव पारित कर आगामी विधानसभा सत्र में संशोधन विधेयक लाया जा सकता है। लेकिन यदि दिल्ली से मंजूरी नहीं मिली तो प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा और वर्तमान व्यवस्था के अनुसार पार्षद ही मेयर व सभापति चुनेंगे। नगरीय विकास मंत्री झाबरसिंह खर्रा ने कहा कि हमारी तैयारी पूरी है। जो भी राय आला नेतृत्व से मिलेगी, उसके अनुसार चुनाव कराए जाएंगे।