Thursday, 13 November 2025

सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बड़ा बदलाव: अब प्रिंसिपल और अधीक्षक नहीं कर सकेंगे निजी प्रैक्टिस, सीधे प्रिंसिपल की नियुक्ति पर भी रोक


सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बड़ा बदलाव: अब प्रिंसिपल और अधीक्षक नहीं कर सकेंगे निजी प्रैक्टिस, सीधे प्रिंसिपल की नियुक्ति पर भी रोक
  1. जयपुर। राजस्थान सरकार ने राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और हॉस्पिटलों में प्रशासनिक संरचना और नियुक्ति व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।
    चिकित्सा शिक्षा विभाग (Medical Education Department) द्वारा 11 नवंबर को जारी दो आदेशों के तहत अब कॉलेजों के प्रिंसिपल और अधीक्षक (Superintendent) न तो निजी प्रैक्टिस (Private Practice) कर सकेंगे और न ही अपने घर या क्लिनिक पर कोई मरीज देख पाएंगे।इसके अलावा, इन पदों पर नियुक्त डॉक्टरों को विभागीय यूनिट हेड या विभागाध्यक्ष (HOD) के पद पर भी नहीं रखा जाएगा।यह बदलाव सरकारी मेडिकल कॉलेजों की प्रशासनिक पारदर्शिता, जवाबदेही और मरीज सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है।

    प्रिंसिपल पद पर अब सीधी नियुक्ति नहीं, अनुभव होगा जरूरी

    अब कोई भी डॉक्टर सीधे प्रिंसिपल के पद पर नियुक्त नहीं हो सकेगा। केवल वही डॉक्टर इस पद के पात्र होंगे जिनके पास अधीक्षक या अतिरिक्त प्रिंसिपल के रूप में कम से कम 3 वर्ष का अनुभव हो, और विभागाध्यक्ष (HOD) के रूप में कम से कम 2 वर्ष का अनुभव हो। इन योग्यताओं के आधार पर ही डॉक्टर को कॉलेज का प्रिंसिपल एवं कंट्रोलर बनाया जाएगा।

    प्रिंसिपल चयन के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति

    चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रिंसिपल पद पर नियुक्ति के लिए 4 सदस्यीय चयन समिति गठित की है, जिसमें शामिल होंगे: मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार,अतिरिक्त मुख्य सचिव (कार्मिक विभाग),अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा शिक्षा विभाग) , कुलपति — राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (RUHS) या मारवाड़ मेडिकल यूनिवर्सिटी, जोधपुर इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही किसी भी कॉलेज में प्रिंसिपल की नियुक्ति होगी।

    तीन साल का कार्यकाल, जरूरत पर दो साल का विस्तार

    आदेशों के अनुसार, प्रिंसिपल पद पर अब तीन साल का कार्यकाल (Tenure) तय किया गया है।यदि किसी डॉक्टर का कार्य प्रदर्शन संतोषजनक रहता है और प्रशासनिक आवश्यकता होती है, तो उसका कार्यकाल दो वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकेगा, लेकिन यह विस्तार केवल चिकित्सा शिक्षा विभाग की स्वीकृति से ही संभव होगा।

    अधीक्षक बनने के नियम भी बदले, केवल सीनियर प्रोफेसर को मौका

    नए आदेशों के मुताबिक, किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हॉस्पिटल में अधीक्षक (Superintendent) पद पर अब केवल सीनियर प्रोफेसर स्तर का डॉक्टर ही नियुक्त किया जा सकेगा। इसका मतलब है कि ग्रुप-II के डॉक्टर अब बड़े सरकारी हॉस्पिटलों में अधीक्षक नहीं बन सकेंगे।अधीक्षक पद के चयन के लिए एसीएस (मेडिकल एजुकेशन) की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है, जिसमें शामिल हैं:

    • आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा

    • अतिरिक्त निदेशक (हॉस्पिटल प्रशासन), RAJMES

    • अतिरिक्त निदेशक (एकेडमिक), चिकित्सा शिक्षा विभाग

    • संबंधित मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल

    कार्यभार हस्तांतरण और फाइल प्रक्रिया के नए नियम

    नए प्रावधानों के अनुसार, अधीक्षक के कार्यकाल पूरा होने पर नए अधीक्षक को एक माह तक पुराने अधीक्षक के अधीन रहकर कार्य समझना होगा। पहले एक माह तक सभी फाइलों पर पुराने अधीक्षक के हस्ताक्षर से ही निर्णय होंगे।अगले दो माह तक नया अधीक्षक किसी भी फाइल पर निर्णय लेने से पहले पुराने अधीक्षक से राय लेगा। इससे प्रशासनिक निरंतरता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।

    अधीक्षक को देना होगा 75% समय प्रशासन को

    नए नियमों के तहत, जो भी प्रोफेसर या सीनियर प्रोफेसर अधीक्षक पद पर तैनात किया जाएगा, उसे अपने समय का तीन-चौथाई (75%) भाग अस्पताल प्रशासन के कामों में देना होगा, जबकि केवल एक-चौथाई समय वह अपने मूल अध्यापन या क्लिनिकल कार्यों में दे सकेगा।

    उद्देश्य — पारदर्शिता और जवाबदेही

    इन सभी बदलावों का मकसद सरकारी मेडिकल संस्थानों में प्रशासनिक सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाना और हितों के टकराव (Conflict of Interest) को रोकना है। अब कोई भी वरिष्ठ डॉक्टर, जो कॉलेज या अस्पताल का प्रमुख है, निजी प्रैक्टिस या व्यक्तिगत लाभ नहीं उठा सकेगा। इससे चिकित्सा व्यवस्था में पारदर्शिता और रोगी हितों की प्राथमिकता सुनिश्चित होने की उम्मीद है।




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