जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने नगर निकाय प्रशासन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला सुनाया है। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने कहा है कि नगर पालिकाओं और नगर परिषदों के निर्वाचित अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वे पद पर किसी भी रूप में अध्यक्ष नहीं रह सकते। कार्यकाल पूरा होने के बाद नागरिक निकायों में प्रशासक के रूप में केवल सरकारी अधिकारी ही नियुक्त किए जा सकते हैं, न कि पूर्व अध्यक्ष या पार्षद।
फैसले में स्पष्ट किया गया — “कार्यकाल समाप्ति के बाद वैधानिक अधिकार समाप्त”: हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जैसे ही किसी नगर पालिका या परिषद का निर्वाचित बोर्ड अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लेता है, उसके बाद अध्यक्ष का पद स्वतः रिक्त माना जाएगा।पूर्व अध्यक्ष के पास किसी भी प्रकार का वैधानिक या प्रशासनिक अधिकार नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति में, राज्य सरकार को अधिकार होगा कि वह किसी योग्य सरकारी अधिकारी को प्रशासक नियुक्त करे, ताकि स्थानीय निकाय का कामकाज बाधित न हो।
राजस्थान में कई नगर निकायों पर पड़ेगा असर: हाईकोर्ट के इस फैसले का असर राजस्थान की कई नगर पालिकाओं और नगर परिषदों पर पड़ेगा, जहां निर्वाचित बोर्डों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन पूर्व अध्यक्ष अभी भी पद पर बने हुए हैं।अब इन सभी निकायों में राज्य सरकार को नए सिरे से प्रशासक नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
अदालत ने कहा — कानून में स्पष्ट प्रावधान: जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने अपने आदेश में कहा कि राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की मंशा यही है कि जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल निश्चित (Fixed Tenure) होता है। एक बार वह अवधि समाप्त हो जाने के बाद वे सार्वजनिक पद का दुरुपयोग या कब्जा जारी नहीं रख सकते। राज्य सरकार केवल सेवारत अधिकारी को ही प्रशासक नियुक्त कर सकती है ताकि प्रशासनिक कार्यकुशलता बनी रहे।
स्थानीय निकाय चुनावों से पहले आया अहम निर्णय: यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब राज्य में कई नगर निकायों के चुनाव लंबित हैं और प्रशासनिक रूप से उनके संचालन को लेकर कानूनी विवाद चल रहे थे। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह स्थिति स्पष्ट हो गई है कि कार्यकाल समाप्त होने पर अध्यक्ष का अधिकार स्वतः समाप्त हो जाएगा, और राज्य सरकार को ही प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार रहेगा।