जयपुर। जयपुर नगर निगम ग्रेटर में मेयर सौम्या गुर्जर और कमिश्नर डॉ. गौरव सैनी के बीच टकराव एक बार फिर सुर्खियों में है। निगम बोर्ड का कार्यकाल अब एक महीने से भी कम समय का रह गया है, लेकिन इस अंतिम दौर में भी निगम का प्रशासनिक माहौल विवादों से घिरा हुआ है।
बीते 8 दिनों में कमिश्नर गौरव सैनी ने दो अलग-अलग आदेश जारी करते हुए 5 इंजीनियर और 3 उपायुक्त स्तर के अधिकारियों का तबादला कर दिया। वहीं, मेयर सौम्या गुर्जर ने इन आदेशों को “अवैध और बिना अनुमोदन के” बताते हुए मौखिक रूप से निरस्त कर दिया। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को अपनी पुरानी जगह पर ही कार्य जारी रखने के निर्देश दे दिए।
इस आदेश-विपरीत स्थिति के कारण अब अधिकारी भ्रम की स्थिति में हैं — वे तय नहीं कर पा रहे कि नई जगह ज्वाइन करें या पुरानी जगह पर बने रहें।
कमिश्नर गौरव सैनी ने 24 सितंबर और 1 अक्टूबर को दो आदेश जारी किए, जिनमें 8 अधिकारियों के कार्यक्षेत्र में परिवर्तन किया गया।इनमें इंजीनियरों और उपायुक्तों के साथ जोन स्तर पर पदस्थापन शामिल था।
जब मेयर ने बाद में निगम की रिव्यू बैठक बुलाई, तो जिन अधिकारियों का तबादला किया गया था, वे अपने नए पद के तहत बैठक में पहुंचे।लेकिन मेयर सौम्या गुर्जर ने बैठक में उन्हें बैठने की अनुमति ही नहीं दी।सूत्रों के मुताबिक, झोटवाड़ा जोन से प्रतिनिधित्व करने आए अधिशाषी अभियंता पंकज कुमार मीना को मेयर ने मीटिंग से बाहर कर दिया था।
विवाद बढ़ने के बाद मेयर ने एक ऑफिस ऑर्डर जारी कर कमिश्नर को दोनों तबादला आदेश निरस्त करने के निर्देश दिए।
मेयर ने अपने पत्र में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम-2009 की धारा 333 (1) और (2) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार नगरपालिकाओं में तकनीकी सेवाओं से संबंधित अधिकारियों (जैसे अभियंता, स्वास्थ्य अधिकारी, राजस्व अधिकारी, विधि अधिकारी आदि) की नियुक्ति कर सकती है,और इन अधिकारियों के बीच कार्य का वितरण अध्यक्ष (मेयर) के अनुमोदन से आयुक्त द्वारा किया जाएगा।
मेयर ने स्पष्ट लिखा कि 24 सितंबर और 1 अक्टूबर के आदेशों को अध्यक्ष की स्वीकृति नहीं मिली, इसलिए वे “अवैध और प्रभावहीन” हैं।
उन्होंने निर्देश दिया कि अधिकारी पूर्ववत अपने पदों पर कार्य करें।
मेयर और कमिश्नर के बीच इस प्रशासनिक खींचतान का सीधा असर अब निगम के सफाई, सीवर और दीपावली तैयारियों पर पड़ने लगा है। कई विभागों में कामकाज धीमा हो गया है क्योंकि अधिकारी यह तय नहीं कर पा रहे कि किस आदेश का पालन करें।यह विवाद ऐसे समय में हुआ है जब निगम ग्रेटर बोर्ड का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है और संभावित प्रशासक नियुक्ति की चर्चा भी शुरू हो चुकी है। राजनीतिक हलकों में यह मामला अब राज्य सरकार तक पहुंचने की संभावना जताई जा रही है।