राजस्थान के पंचायती राज विभाग में एलडीसी (लोअर डिविजन क्लर्क) की सीधी भर्ती प्रक्रिया में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। यह घोटाला कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 2013 और 2022 में हुई भर्तियों से जुड़ा है, जहां करीब 15,000 संविदा कर्मचारियों को बिना टाइप टेस्ट और फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नियमित कर दिया गया। यह घोटाला उस समय उजागर हुआ जब 2018 में विभाग ने 277 कर्मचारियों के फर्जी अहर्ता और अनुभव प्रमाण पत्रों का खुलासा किया, लेकिन इसके बाद अन्य मामलों को जानबूझकर दबा दिया गया।
विभाग में उस समय भर्तियों के लिए कंप्यूटर डिप्लोमा अनिवार्य था, लेकिन बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने राज्य से बाहर के विश्वविद्यालयों के फर्जी ऑफ-कैंपस डिप्लोमा प्रस्तुत किए। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल और सीएमजे विश्वविद्यालय, मेघालय के डिप्लोमा, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अमान्य घोषित किए जा चुके हैं, उन्हें स्वीकार कर भर्ती कर ली गई।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रो. यशपाल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2005) के ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया था कि किसी भी विश्वविद्यालय को राज्य की सीमा से बाहर ऑफ-कैंपस स्टडी सेंटर चलाने की अनुमति नहीं है। इसके बावजूद ऐसे फर्जी प्रमाण पत्र मान्य किए गए और विभाग ने 2018 में राजस्थान हाईकोर्ट में 277 मामलों को इसी आधार पर अमान्य बताया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 2013 में किए गए आवेदन 2022 की भर्ती में भी शामिल किए गए, जिनमें कई उम्मीदवारों ने पहले अनुभव शून्य बताया था, लेकिन 2022 में उन्हीं आवेदनों में अनुभव प्रमाण पत्र जोड़ दिए गए। यह खुलासा तब हुआ जब एसओजी द्वारा अलवर जिला परिषद में एक एफआईआर दर्ज की गई।
पंचायती राज विभाग के तत्कालीन सचिवों द्वारा सभी जिला परिषदों के सीईओ को लिखित आदेश दिए गए थे कि फर्जी प्रमाण पत्रों पर नियुक्त कर्मचारियों को हटाया जाए, जिनमें 13 जून 2018 का आदेश भी शामिल है। लेकिन ये आदेश केवल औपचारिकता बनकर रह गए और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अब जब पूरा मामला फिर से उजागर हुआ है, विभाग में भारी हड़कंप मच गया है और कार्रवाई की मांग तेज हो गई है।