जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट और साइबर क्राइम से जुड़े मामलों की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और न्यायाधीश मनीष शर्मा की खंडपीठ ने स्वप्रेरणा से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि साइबर अपराध अब आम जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहे हैं और इनसे निपटने के लिए संरचित सिस्टम विकसित करना अनिवार्य हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश स्वयं होते-होते बचे शिकार: सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश श्रीवास्तव ने एक महत्वपूर्ण अनुभव साझा करते हुए बताया कि एक बार साइबर अपराधी द्वारा कॉल किए जाने पर वे स्वयं एक बड़े फ्रॉड का शिकार होते-होते बच गए। उन्होंने तत्काल मोबाइल रजिस्ट्रार को फोन सौंप दिया, जिन्होंने तत्परता से आगे की कार्रवाई की।
रिपोर्ट पेश, सरकार से जवाब तलब: न्यायमित्र अनुराग कलावटिया ने कोर्ट में साइबर अपराधों से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा। महाधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि सरकार इस दिशा में प्रयासरत है और ठोस रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा गया है। कोर्ट ने इसके साथ ही केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
स्वप्रेरणा से दर्ज याचिका में मुख्य मुद्दा: कोर्ट ने इस साल डिजिटल अरेस्ट और साइबर क्राइम की घटनाओं में तेजी से हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए यह याचिका स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की थी। कोर्ट ने कहा कि इन मामलों से हर वर्ग और क्षेत्र के नागरिक प्रभावित हो रहे हैं — आम आदमी, वकील, डॉक्टर, व्यापारी, यहां तक कि न्यायपालिका तक को निशाना बनाया जा रहा है।