जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने रामगंज थाना, जयपुर के सब इंस्पेक्टर संदीप यादव की कार्रवाई पर गंभीर टिप्पणी करते हुए मौखिक रूप से पूछा है कि "आपको सस्पेंड क्यों न किया जाए?" यह टिप्पणी एक सिविल विवाद में फौजदारी मुकदमा दर्ज कर आरोपी को बिना नोटिस और गिरफ्तारी वारंट के घर से जबरन ले जाने के मामले में की गई।
मामला रोहित पटोलिया से जुड़ा है, जिनके खिलाफ दर्ज FIR को एडवोकेट पूनम चंद भंडारी ने झूठी और विधिविरुद्ध बताया। कोर्ट में प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार, 12 मई 2025 को सब इंस्पेक्टर संदीप यादव चार पुलिसकर्मियों के साथ रोहित के श्याम नगर स्थित निवास पहुंचे और बिना गिरफ्तारी नोटिस दिए उन्हें थाने ले गए। जब परिवार और वकील ने 41-A की प्रक्रिया की जानकारी मांगी, तो पुलिस ने साफ इंकार कर दिया और बलपूर्वक थाने ले जाया गया।
पुलिस द्वारा रोहित को पहले श्याम नगर थाना और फिर रामगंज थाना ले जाकर देर रात तक पूछताछ की गई। FIR में दर्ज आरोपों के अनुसार मामला एक लाख अट्ठाइस हजार रुपये के लेन-देन का था, जो वास्तव में भूमि खरीद से जुड़ा दीवानी मामला था।
हाईकोर्ट के समक्ष भंडारी ने तर्क दिया कि यह प्रकरण न केवल सिविल नेचर का है बल्कि कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 24 का उल्लंघन है। इसके साथ ही, 2 लाख से अधिक की नगद राशि देने के दावे पर आयकर कानून और पंजीयन अधिनियम के तहत परिवादी के खिलाफ जांच आवश्यक है।
कोर्ट ने यह भी पाया कि पुलिस ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्रवाई की और आरोपी को बार-बार बुलाने के बावजूद मनमानी की।
21 मई को कोर्ट में हुई सुनवाई में भंडारी ने बताया कि आरोपी के खिलाफ दर्ज FIR से पूर्व भी दो बार थाने बुलाकर पूछताछ की जा चुकी थी, जिसमें कोई तथ्य नहीं पाया गया। वहीं मुख्य अभियुक्त जकीउद्दीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
कोर्ट ने कहा कि जब प्रकरण विशुद्ध रूप से सिविल प्रकृति का है, तो पुलिस की फौजदारी दखलंदाजी न केवल अधिकार का अतिक्रमण है, बल्कि न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है।
अब यह मामला जुलाई 2025 में विस्तृत सुनवाई के लिए रखा गया है, जिसमें ऐसे सभी मामलों को एक साथ सुनने का आदेश न्यायालय ने दिया है। वहीं एडवोकेट भंडारी ने संदीप यादव को पक्षकार बनाकर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग करते हुए आवेदन प्रस्तुत कर दिया है।