वेदांता ग्रुप के संस्थापक अनिल अग्रवाल ने युवाओं को एक बेहद प्रेरणादायक संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि अकसर युवा उनसे पूछते हैं, "वेदांता की सफलता का राज़ क्या है?" वे मानते हैं कि लोग किसी जटिल और लंबी रणनीति की अपेक्षा रखते हैं, लेकिन उनका उत्तर बेहद सरल होता है – "मैं बस जुटा रहा, दशकों तक।"
अनिल अग्रवाल ने कहा कि जब उन्होंने वेदांता की नींव रखी थी, तब वे खुद एक युवा थे और उन्हें लगा था कि एक-दो साल में सफलता मिल जाएगी। लेकिन हकीकत ये थी कि पहले दस वर्षों तक कोई बड़ा परिणाम नहीं मिला। उन्होंने एक छोटे से ऑफिस से काम करना शुरू किया, जहां उन्हें टेलीफोन तक साझा करना पड़ता था। लोकल ट्रेन से घर लौटते थे, थके हुए जरूर होते थे, लेकिन भीतर से संतुष्ट और आश्वस्त रहते थे कि वे एक लंबी रेस के धावक हैं।
उन्होंने कहा कि मुश्किलें इतनी थीं कि कई बार उन्हें अपनी टीम को वेतन तक नहीं दे पाने की स्थिति का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने कहा कि जब ज़्यादातर दरवाज़े बंद लग रहे थे, तब भी मैं रुका नहीं।"
उनके अनुसार, सफलता धीरे-धीरे आती है, पहले अदृश्य रहती है। इसे पाने का एक ही तरीका है – कमिटमेंट और कंसिस्टेंसी। अनिल अग्रवाल ने कहा कि वे वेदांता के प्रति एक "पेट्रियट" की तरह समर्पित हैं और सच्चे देशभक्त की तरह उन्होंने कभी हार नहीं मानी, बल्कि कठिन समय में और ज़्यादा मेहनत की।
उन्होंने अमेरिका के लेखक डेविड पेरेल का एक उद्धरण साझा करते हुए कहा –"कंपनी खड़ी करने के लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिलते हैं जो हर दिन, हर समय उपस्थित रहते हैं — तब भी जब उनका मन न हो।"
अपना संदेश समाप्त करते हुए उन्होंने युवाओं को सलाह दी –"छोटी-सी शुरुआत करें, लेकिन टिके रहें। ग्रोथ कर्व ऊपर-नीचे होता है, लेकिन जो डटे रहते हैं, एक दिन वही उठाए जाते हैं।"