राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ एंड साइंसेज (RUHS) के नए कुलपति के रूप में डॉ. प्रमोद येवले की नियुक्ति कर दी गई है। राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने इस संबंध में आधिकारिक आदेश जारी किए।
डॉ. येवले महाराष्ट्र के सीनियर फार्मासिस्ट रह चुके हैं और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर यूनिवर्सिटी के कुलपति भी रह चुके हैं। करीब एक महीने पहले हुए इंटरव्यू के बाद इस नियुक्ति पर निर्णय रुका हुआ था, जिसे अब मंजूरी दे दी गई है। राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे ने आदेश जारी कर प्रो. (डॉ.) प्रमोद येवले को राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति पद पर नियुक्त किया है। श्री बागडे ने चयन समिति की सिफारिश पर एवं राज्य सरकार के परामर्श से यह आदेश जारी किया है। राज्यपाल बागडे ने कुलपति पद पर यह नियुक्ति प्रो. प्रमोद येवले के कार्यभार संभालने की तिथि से 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक इनमें से जो भी पहले के लिए की है।
RUHS के कार्यवाहक कुलपति डॉ. धनंजय अग्रवाल को इंटरव्यू कमेटी ने अयोग्य घोषित कर दिया था, जिसके बाद इस नियुक्ति को लेकर लगातार विरोध हो रहा था। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की राजस्थान ब्रांच ने भी इस फैसले के खिलाफ राज्यपाल को पत्र लिखा था और बाहरी व्यक्ति को कुलपति बनाए जाने का विरोध किया था।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की राजस्थान ब्रांच ने डॉ. येवले की नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कुलपति पद के लिए किसी स्थानीय योग्य उम्मीदवार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी।
IMA के अनुसार RUHS जैसी प्रतिष्ठित स्वास्थ्य यूनिवर्सिटी का नेतृत्व करने के लिए राजस्थान के ही किसी अनुभवी चिकित्सक या चिकित्सा प्रशासक को चुना जाना चाहिए था। लेकिन सरकार ने महाराष्ट्र से एक उम्मीदवार को चुना, जो स्थानीय स्वास्थ्य परिदृश्य से परिचित नहीं है।
महाराष्ट्र के सीनियर फार्मासिस्ट और फार्मेसी क्षेत्र में विशेषज्ञता।डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति रह चुके हैं।मेडिकल शिक्षा और प्रशासन में कई वर्षों का अनुभव।स्वास्थ्य नीति और अनुसंधान में योगदान।
राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने कहा कि RUHS में नेतृत्व को और मजबूत करने के लिए अनुभवी व्यक्ति की जरूरत थी। हमने सभी योग्य उम्मीदवारों का मूल्यांकन किया और यह नियुक्ति पूरी पारदर्शिता के साथ की गई है। राज्य की चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को और आगे ले जाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
IMA की आपत्ति और स्थानीय मेडिकल जगत की नाराजगी को देखते हुए, इस नियुक्ति पर आगे भी सवाल उठ सकते हैं। अब देखना होगा कि सरकार इस विरोध को कैसे संभालती है और डॉ. प्रमोद येवले कैसे अपने नए कार्यकाल में संतुलन बनाते हैं।