जयपुर नेट थिएट कार्यक्रमों की श्रृंखला में मंगल ध्वनि कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध वायलिन वादक गुलज़ार हुसैन ने कार्यक्रम की शुरूआत राग बिहाग से की ।
नेट थिएट के राजेंद्र शर्मा राजू ने बताया कि प्रिंस आफ वायलिन गुलजार ने राग बिहाग में मध्य लय झपताल की बहुत ही सुंदर बंदिश मंगल गाओ चौक पूराओ को गंधार व निषाद स्वरों की नजाकत के साथ बढ़त करते हुए पेश किया। उन्होंने राग बिहाग में अलाप, जोड़ के बाद स्वर विस्तार से राग की बढ़त करते हुए गमक की ताने , तीनों सप्तक की ताने के साथ सुंदर तिहाईयो से राग का श्रृंगार किया।
इस के बाद मध्यलय तीनताल में बंदिश लट उलझी सुलझा जा रे बालम को भावपूर्ण व बोल बांट के साथ प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
युवा तबला वादक मेराज हुसैन की लाजबाव संगत ने कार्यक्रम में चार चांद लगाए। कार्यक्रम में गुलज़ार ने अपने अनोखे तरब व पांच तारो के वायलिन पर अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के बाद थियेटर कलाकार रेनू सनाढ्य से चर्चा करते हुए गुलज़ार हुसैन ने वायलिन के इतिहास के बार में अनेक जानकारी दी।
गुलज़ार ने अपने कार्यक्रम में पांच सौ वर्षों में वायलिन में हुए बदलाव को भी अपने वायलिन कलेक्शन के जरिए दर्शकों को दिखाया। एक सवाल के जवाब में उन्होंने वायलिन कहा बना पर गुलज़ार ने बताया 16वीं सदी में यूरोप के इटली में आंद्रे अमाती ने प्रथम वायलिन बनाया, व आज जो हम वायलिन का रूप देखते हे उसे यूरोप के एंटोनियो स्त्रादिवरी ने पूरा किया। भारत से इस का क्या संबंध हे इस के जबाव में बताया कि अमेरिका के मशहूर संगीतज्ञ ने ये स्वीकार किया कि वायलिन का आइडिया रावण हत्ते को देखकर ही आया। गुलज़ार ने कहा किसी भी साज को दूसरे नाम की जरूरत ही नहीं हे , चाहे वो सितार , वायलिन, तबला गिटार , वीणा , इत्यादि कुछ भी हो। है जरूरत के हिसाब से उस में बदलाव किया जा सकता हे ।
कार्यक्रम में इंपीरियल प्राइम कैपिटल के संगीत रसिक मनीष अग्रवाल की ओर से कलाकारों को स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए।
कार्यक्रम संयोजक नवल डांगी, कैमरा मनोज स्वामी, संगीत तपेश शर्मा, फोटोग्राफी और वीडियो मिहिजा शर्मा,प्रकाश जीवितेश शर्मा एवं मंच सज्जा अंकित शर्मा नोनू की रही ।