प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव का प्रचार सोमवार को थम गया। आगामी 13 नवंबर को इन सीटों पर होने वाले मतदान में 84 प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला होगा। इस उपचुनाव में चेहरों और जातियों के समीकरणों ने मुख्य भूमिका निभाई, जिसमें मुद्दों, विकास, और विचारधाराओं को कहीं पीछे छोड़ दिया गया। प्रमुख राजनीतिक पार्टियां और निर्दलीय प्रत्याशी सभी जातिगत गणित बिठाते हुए ही नजर आए। सभी ने अपनी रणनीति जातीय आधार पर बनाते हुए हर क्षेत्र में अलग-अलग समुदायों के बाहुल्य का ध्यान रखा।
दौसा में सर्वाधिक 63 हजार मीणा, 34 हजार ब्राह्मण, और 28 हजार बैरवा मतदाता हैं। यहां पर गुर्जर और माली मतदाताओं की संख्या भी महत्वपूर्ण है। प्रमुख प्रत्याशी मीणा और बैरवा समुदाय से हैं, जिससे जातिगत समीकरण काफी अहम हो जाते हैं। इसी तरह देवली-उनियारा में 67 हजार मीणा, 35 हजार गुर्जर, और 26 हजार बैरवा वोटर हैं, जहां मुख्य प्रत्याशी मीणा और गुर्जर समुदाय से आते हैं।
खींवसर में सर्वाधिक 80 हजार जाट, 30 हजार राजपूत, और 12 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं, जिससे यहां सभी मुख्य प्रत्याशी जाट समुदाय से हैं। झुंझुनूं में 62 हजार जाट, 54 हजार मुस्लिम और 24 हजार मेघवाल वोटर हैं, और यहां मुख्य मुकाबला दो जाट और एक राजपूत (निर्दलीय) प्रत्याशी के बीच है। चौरासी में 1.98 लाख आदिवासी वोटर्स का बाहुल्य है, और तीनों मुख्य प्रत्याशी भी आदिवासी समुदाय से हैं।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि राजस्थान में यह उपचुनाव जातीय समीकरणों और जातीय बहुलता पर आधारित है। प्रमुख दलों ने जातिगत आधार पर ही प्रचार और प्रचारकों का चयन किया है, जिससे यह उपचुनाव चेहरों और जातियों के गठजोड़ का प्रतीक बन चुका है।