कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीना के हालिया बयान से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में नया विवाद उभर आया है। मीना ने रामकथा के मंच से अपने पद और पार्टी नेतृत्व को लेकर जो नाराजगी व्यक्त की है, उससे पार्टी के अंदर खलबली मच गई है। उन्होंने मंत्री पद को लेकर अपनी असहमति जताते हुए खुद को "शिखंडी" की उपमा दी, जो स्पष्ट रूप से उनके असंतोष और नेतृत्व से दूरी को दर्शाता है। इस बयान ने भाजपा के लिए राजनीतिक संकट को गहरा दिया है।
मीना का यह बयान ऐसे समय में आया है जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और भाजपा को पार्टी के आंतरिक मतभेदों से जूझना पड़ रहा है। उनके इस्तीफे की पेशकश और उसे स्वीकार नहीं किए जाने की स्थिति ने पार्टी के भीतर नेतृत्व के फैसलों पर सवाल खड़े किए हैं। अगर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने इस मसले को जल्द सुलझाने का प्रयास नहीं किया, तो इसका असर चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है।
डॉ. किरोड़ीलाल मीना जैसे वरिष्ठ नेता के इस प्रकार के बयान से यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के भीतर कुछ मुद्दों पर असंतोष बढ़ रहा है, जिसे हल करना केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता होनी चाहिए। अन्यथा, भाजपा को आने वाले समय में राजनीतिक रूप से बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।