भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की मनमानी और स्थानीय नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं की हताशा निराशा के कारण भाजपा की गंगानगर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, बाड़मेर, टोंक-सवाईमाधोपुर, दौसा, भरतपुर, करौली-धौलपुर, बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में चुनाव हारी है। 11 लोकसभा क्षेत्रों के 88 विधानसभा क्षेत्र में से 49 विधानसभा सीटों पर भाजपा की हार हुई है। कहने को तो 27 सीटों पर भाजपा विधायक हैं उसके बावजूद भी भाजपा हारी है। हार के बाद भाजपा में समीक्षा का दौर शुरू हो गया है। इसकी रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। भाजपा द्वारा तैयार हार की तैयार रिपोर्ट में नेताओं की कमियों और उनके कारण हर का पूरा विस्तार से जिक्र किया गया है।आप भाजपा अपनी तैयार हर के कर्म की रिपोर्ट को राष्ट्रीय अध्यक्षऔर केंद्रीय चिकित्सा मंत्री जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भेजा जाएगा।
भाजपा मुख्यालय पर दो दिन तक लोकसभा चुनाव के प्रभारीऔर शहर प्रभारी के साथ ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी और हारने वाले प्रत्याशियों के साथ प्रभारी की मौजूदगी में भाजपा ने विस्तार से अपने रिपोर्ट तैयार की हैअब दिल्ली में इस रिपोर्ट को लेकरभाजपा के नेताओं के साथ चर्चा किए जाने की संभावना है।
बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र: बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्रमें भाजपा को सबसे बड़ी हार में मिली। भाजपा प्रत्याशीऔर केंद्रीय कृषि कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरीतीसरे नंबर पर रहे है यहां भाजपा को उनकी पार्टी से बगावत कर शिव से बने निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी ने भाजपा को बुरी तरह चुनाव हराया। स्वयं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी निर्दलीय विधायक रविंद्र भाटी कोसमझ पाने में नाकाम रहे और पार्टी चुनाव हार गई।आखिर इसमें गलती किसकी रही इस पर स्पष्ट रूप से कुछ लिखा नहीं गया है यह बात सही है कि पार्टी की आंतरिक कलह के कारण भी पार्टी को यहां पर हार का मुंह देखना पड़ा है।
कहने को तो भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए केके विश्नोई राज्य मंत्री भी बनाया इसके उसके बावजूद भाजपा के पांच विधायकों के विधानसभा क्षेत्र से लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार गई।
करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र: करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र पर भाजपा केटिकट वितरण को लेकर भी विवाद रहा। इसके चलते पार्टी का मूल कार्यकर्ता निराश और हताश रहा। यही कारण रहा कि वह चुनाव से दूरी बनाए रखने के कारण भाजपा चुनाव हार गई। कृषि मंत्री डॉ.किरोड़ीलाल मीणा भी भाजपा को वोट दिलाने में सक्षम नहीं हुए। कृषि मंत्री डॉ. करोड़ी लाल मीणा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोसा सहित सात लोकसभा क्षेत्र को जिताने की जिम्मेदारी दी थी लेकिन भाजपा वहां नहीं जीत पाई। डॉ. करोड़ी लाल मीणा विवादित रहे और वे भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में सफल नहीं हुए। दोसा सहित 4 भाजपा विधायकों के इलाकों में पार्टी हारी। करौली-धौलपुर की 8 में से 5 सीटों पर भाजपा हारी। 2 भाजपा विधायकों के इलाके में भी हार का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के चुनावी दौरे हुए लेकिन प्रभावी नजर नहीं आए।
भरतपुर लोकसभा क्षेत्र: भरतपुर लोकसभा क्षेत्र पर एससी-एसटी वोटर्स पर आरक्षण खत्म करने के कांग्रेस के प्रचार का बड़ा असर देखने को मिला। यही भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण रहा है। जाट आरक्षण के मुद्दे के जोर पकड़ने से भी नुकसान हुआ। लोकसभा चुनाव से पहले जाट आरक्षण के मुद्दे ने भाजपा के प्रति नाराजगी पैदा की और इस मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल नहीं कर सके। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जाटों को समझापाने में नाकाम रहे भाजपा भरतपुर लोकसभा क्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्र में से 6 विधानसभा क्षेत्र में भाजपा पीछे रही। गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम सहित 5 भाजपा विधायकों के इलाकों में लोकसभा का चुनाव हारी।
टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र: टोंक-सवाईमाधोपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा अपने पुराने उम्मीदवार सुखवीर जौनपुरिया की व्यक्तिगत नाराजगीऔर सचिन पायलट प्रभावी भूमिका के कारण भाजपा चुनाव हारी है । कांग्रेस उम्मीदवार हरीश मीणा सचिन पायलट समर्थक थे। यही कारण रहा कि यहां गुर्जर, मीणा, मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में रहे और भाजपा चुनाव हार गई। टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र में से 6 विधानसभा में भाजपा हारी। कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा, खंडार विधायक जितेंद्र गोठवाल के इलाकों में भाजपा की हारी हुई।
झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र: झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की हार के पीछे आपसी फूट को माना जा रहा। भाजपा के कई स्थानीय नेता निष्क्रिय रहे। भाजपा विधायकों के इलाकों में भी कोई खास वोट नहीं मिले। कर्मचारियों और किसानों की नाराजगी से इस सीट पर भाजपा को नुकसान हुआ। भाजपा के प्रत्याशी शुभकरण चौधरी ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि अग्निवीर योजना से युवाओं की नाराजगी और जातीय समीकरण भी मैं चुनाव हारा हूं।
नागौर लोकसभा क्षेत्र: नागौर लोकसभा क्षेत्र में स्थानीय नेताओं की आंतरिक कलह और आपसी फूट के कारण भाजपा चुनाव हारी है। इंडिया गठबंधन उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल जातीय समीकरण और पुराने संबंधों के चलते भाजपा को हरा पाए । भाजपा ने जिस उम्मीदवार ज्योति मिर्धा को चुनाव लड़ाया उसके खिलाफ पहले ही वातावरण बना हुआ था। पूर्व सांसद सीआर चौधरी को किसान आयोग का अध्यक्ष बनाने के बाद भी भाजपा को कोई लाभ नहीं मिला।
बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र: बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा आदिवासी वोटर के स्थानीय भावनात्मक मुद्दे को समझ नहीं पाना रहा। भाजपा नेतृत्व भारत आदिवासी पार्टी के स्थानीय नेटवर्क और आदिवासी वोटर्स तक उनके जुड़ाव की काट नहीं खोज पाया। कांग्रेस नेता महेंद्र जीत मालवीय को भाजपा में लेकर उम्मीदवार बनाने से फायदे की जगह नुकसान हुआ। भारतीय आदिवासी पार्टी के भील प्रदेश के मुद्दे ने भी भाजपा का नुकसान किया। स्थानीय मुद्दे हावी रहने से भाजपा के मुद्दे नहीं चले। 8 में से 7 विधानसभा सीटों पर भाजपा चुनाव हारी। यही नहीं दो विधायकों के इलाकों में हार हुई। भाजपा बागीदौरा विधानसभा का उपचुनाव भी नई जीत पाई।
श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र : श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में मौजूदा सांसद निहालचंद मेघवाल का टिकट काटकर नई उम्मीदवार को खड़ा करना भाजपा को नुकसानदायक साबित हुआ। भाजपा की उम्मीदवार विवादित रहीइसका फायदा सीधा तौर पर कांग्रेस के उम्मीदवार कुलदीप इंदौरा को मिला। भाजपा किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी को समझ नहीं पाई। गंगानगर के लोकसभा चुनाव में पंजाब और हरियाणा की राजनीतिक असर का भी नुकसान हुआ। भाजपा गंगानगर लोकसभा क्षेत्र में 8 में से 7 विधानसभा क्षेत्र में भाजपा हारी। भाजपा केविधायक सादुलशहर के इलाके में पार्टी पीछे रही।
सीकर लोकसभा क्षेत्र: सीकर लोकसभा क्षेत्र में हार का सबसे बड़ा कारण जातीय समीकरण नहीं साध पाने के साथ कई इलाकों में भितरघात को भी माना जा रहा है। भाजपा के धोद विधायक गोवर्धन वर्मा और खंडेला विधायक सुभाष मील के इलाकों में भी भाजपा उम्मीदवार की हार हुई। सीकर लोकसभा क्षेत्र में 8 में से 6 विधानसभा क्षेत्र में भाजपा हारी है। मौजूदा सांसद सुमेधानंद की पुरानी नाराजगी भी पार्टी का हार का कारण बनी।
चूरू लोकसभा क्षेत्र:चूरू लोकसभा क्षेत्र का पूरा चुनाव जातीय गोलबंदी के इर्द-गिर्द होने का सबसे बड़ा नुकसान हुआ। चूरू लोकसभाक्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्र में से 5 विधानसभा क्षेत्र में भाजपा हारी। चूरू में हार का सबसे बड़ा कारण जातीय आधार पर गोलबंदी और जातीय नाराजगी के साथ एससी और माइनॉरिटी वोटर्स की गोलबंदी रही। भाजपा के फीडबैक में राहुल कस्वां की टिकट काटने से जातीय गोलबंदी का भाजपा को नुकसान होने का कारण बताया गया है। लोकल लेवल पर भाजपा के कई नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। लोकसभा चुनावों से पहले स्थानीय स्तर के कई बीजेपी नेताओं ने भितरघात किया। यहां समय रहते डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाना हार का बड़ा कारण माना गया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत को प्रभारी बनाकर लगाया था लेकिन वह निष्क्रिय नजर आए। पूर्व प्रतिपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ की राजनीति ने पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा और लोकसभा चुनाव हार गए।