



ब्रेस्ट कैंसर को आमतौर पर महिलाओं से जुड़ी बीमारी माना जाता है, लेकिन राजस्थान में सामने आ रहे आंकड़े इस धारणा को तोड़ते हैं। राज्य में हर साल करीब 250 से 300 पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें से लगभग 60 प्रतिशत केस तीसरी या चौथी स्टेज में पहुंच चुके होते हैं। वरिष्ठ मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. ललित मोहन शर्मा के अनुसार पुरुषों में बीमारी की पहचान देर से होने का सबसे बड़ा कारण शर्म, झिझक और यह गलतफहमी है कि ब्रेस्ट कैंसर केवल महिलाओं को होता है।
स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में इलाज के लिए आने वाले मरीजों की कहानियां इस गंभीर स्थिति को उजागर करती हैं। कई पुरुष छाती में गांठ, निप्पल से पानी निकलने या त्वचा में बदलाव जैसे लक्षणों को मामूली फुंसी या संक्रमण समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। जब तक जांच कराई जाती है, तब तक बीमारी जटिल स्टेज में पहुंच चुकी होती है, जिससे इलाज कठिन हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्टेज के अनुसार पुरुष और महिलाओं में इलाज के परिणाम लगभग समान होते हैं, लेकिन पुरुषों में खराब प्रोग्नोसिस का कारण बीमारी की आक्रामकता नहीं, बल्कि देर से पहचान है।
डॉक्टरों के अनुसार पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर आमतौर पर 50 से 70 वर्ष की उम्र में पाया जाता है और यह महिलाओं की तुलना में 10–15 साल बाद सामने आता है। इसके प्रमुख कारणों में जेनेटिक फैक्टर, शराब, नशा, बीड़ी-सिगरेट का सेवन और सीने पर पहले हुआ रेडिएशन शामिल हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि स्तन पर गांठ, निप्पल का अंदर धंसना, पानी या खून निकलना, या त्वचा में बदलाव दिखे तो तुरंत जांच करानी चाहिए। परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास होने पर नियमित परामर्श बेहद जरूरी है।