Wednesday, 10 December 2025

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद खुली पोल: राजस्थान के ट्रॉमा सेंटर्स में बेसिक सुविधाओं का भारी अभाव, 15 दिन में रोडमैप तैयार करेगा स्वास्थ्य विभाग


सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद खुली पोल: राजस्थान के ट्रॉमा सेंटर्स में बेसिक सुविधाओं का भारी अभाव, 15 दिन में रोडमैप तैयार करेगा स्वास्थ्य विभाग

सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद राजस्थान के ट्रॉमा सेंटर्स की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। कोर्ट ने हाल में निर्देश दिया कि राज्य के सभी लेवल-1 और लेवल-2 ट्रॉमा सेंटर्स को विकसित किया जाए, रोड सेफ्टी फंड का प्रभावी उपयोग हो और सभी नर्सिंग स्टाफ, तकनीशियन, रेजिडेंट डॉक्टर्स को एडवांस तथा बेसिक लाइफ सपोर्ट की ट्रेनिंग दी जाए। कोर्ट ने हर ट्रॉमा सेंटर में न्यूरोसर्जरी, आर्थोपेडिक, एनेस्थीसिया डॉक्टर्स, सीनियर नर्सिंग स्टाफ और सीनियर रेजिडेंट की उपलब्धता अनिवार्य बताई है। इसके साथ ही ओटी उपकरणों की कमी दूर करने, और प्रोटोकॉल आधारित मैनेजमेंट लागू करने को कहा गया है।

मुख्य सचिव वी. श्रीनिवास ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग, पीडब्ल्यूडी और ट्रैफिक विभाग के शीर्ष अधिकारियों सहित 5 अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी को वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट दी, जिसके बाद अब 15 दिन में ट्रॉमा सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए पूरा रोडमैप तैयार किया जाएगा। राज्य सरकार कुछ प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थानों के साथ मिलकर व्यापक सुधार योजना पर काम करेगी।

प्रदेश के 80 से अधिक ट्रॉमा सेंटर्स के ऑन-ग्राउंड सर्वे में यह सामने आया कि इनमें बेसिक सुविधाओं का भारी अभाव है। प्रदेश के सबसे बड़े एसएमएस ट्रॉमा सेंटर की स्थिति भी मानकों पर खरी नहीं उतरती। यहां ICU में केवल एक ही गेट है, बेडों और गैलेरी के बीच पर्याप्त स्पेस नहीं है, हर बेड पर मॉनिटर उपलब्ध नहीं है और कोई स्थायी क्विक रेस्पॉन्स टीम मौजूद नहीं है। मूवेबल एक्स-रे मशीन हर फ्लोर पर उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण गंभीर मरीजों को नीचे लाना पड़ता है या मशीन का इंतजार करना पड़ता है।

ट्रॉमा सेंटर में सबसे गंभीर कमी है इनमें 2D ईको और MRI की अनुपलब्धता। कार्डियक और एमआरआई जांच के लिए मरीजों को अलग-अलग भवनों में ले जाना पड़ता है, जिससे गंभीर मरीजों के स्पॉट रेस्क्यू और समय पर इलाज में बाधा आती है। बाहरी परिसर में ई-रिक्शा, वेंडर्स और अन्य वाहनों की अव्यवस्थित पार्किंग से एंबुलेंस मूवमेंट बार-बार बाधित होता है और इस पर भी कभी स्थायी कार्रवाई नहीं हो सकी।

ट्रॉमा में सिर्फ आर्थो और न्यूरो स्पेशलिस्ट मौजूद रहते हैं, जबकि अन्य स्पेशलिस्ट ऑन-कॉल रहते हैं। इमरजेंसी केस में ऑन-कॉल व्यवस्था समय पर इलाज में बड़ी रुकावट बनती है। वहीं, एसएमएस से ट्रॉमा सेंटर तक जाने वाले अंडरपास में गंदगी, दुर्गंध और अवैध पार्किंग मरीजों के आवागमन में व्यवधान पैदा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब राज्य सरकार और शीर्ष अधिकारी इन कमियों को दूर करने की दिशा में 15 दिनों के भीतर ठोस रोडमैप प्रस्तुत करेंगे। उद्देश्य यह है कि राजस्थान के ट्रॉमा सेंटर्स को वास्तविक रूप से जीवनरक्षक संस्थान बनाया जा सके।

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