



राजस्थान की नौकरशाही में तब हलचल मच गई जब मुख्य सचिव सुधांश पंत को अचानक दिल्ली बुलाने के आदेश जारी हुए। माना जा रहा है कि पंत का यह तबादला केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि लंबे समय से चल रही अंदरखाने खींचतान और सीमित कार्यस्वतंत्रता का परिणाम है।
सुधांश पंत को जनवरी 2024 में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार के दौरान मुख्य सचिव बनाया गया था। शुरुआत में उन्हें केंद्र और राज्य सरकार के बीच ‘सेतु’ की भूमिका में देखा गया था। पंत ने अपनी प्रशासनिक शैली में तेजी, पारदर्शिता और जवाबदेही पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने विभागीय फाइलों के अनावश्यक विलंब को रोकने और तबादला सूचियों में पारदर्शिता लाने की पहल की। लेकिन पिछले एक वर्ष में हालात बदल गए।
सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री कार्यालय और मुख्य सचिव के बीच रिश्तों में तनाव की स्थिति बनी रही। कई बार ऐसा हुआ कि तबादला सूचियां पंत की आपत्तियों के कारण वापस लौटा दी गईं या देरी से जारी हुईं। कुछ वरिष्ठ अफसरों की पोस्टिंग में मुख्य सचिव की राय को अनदेखा किया गया, जिससे नौकरशाही में यह संदेश गया कि सत्ता के गलियारों में दो धड़े बन चुके हैं — एक मुख्य सचिव के साथ और दूसरा मुख्यमंत्री कार्यालय के साथ।
विभागीय कार्यों के संचालन में भी असंतुलन की स्थिति दिखी। फाइलों का मूवमेंट अक्सर मुख्य सचिव को बाइपास कर सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय भेजा जा रहा था। शासन सचिवालय के गलियारों में यह चर्चा थी कि कई अहम निर्णय पंत की जानकारी के बिना लिए जा रहे हैं। यह सब कुछ उस प्रशासनिक अनुशासन के विपरीत था, जिसके लिए पंत जाने जाते हैं।
इस बढ़ती असहजता के बीच पंत ने अपनी स्थिति केंद्र सरकार तक पहुंचाई। उन्होंने साफ कहा कि यदि उन्हें काम का फ्री हैंड नहीं दिया जा सकता, तो वे दिल्ली लौटने को तैयार हैं। अंततः उनकी मर्जी से यह निर्णय लिया गया, जिसके तहत उन्हें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। यह विभाग केंद्र सरकार का एक प्रभावशाली पोर्टफोलियो माना जाता है, क्योंकि इसके कार्य सीधे तौर पर सामाजिक कल्याण और वोट बैंक से जुड़े होते हैं।
ब्यूरोक्रेट्स और राजनीतिक हलकों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति के बिना इस पद पर किसी वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति संभव नहीं होती। इसलिए पंत की वापसी को ‘सिर्फ ट्रांसफर’ नहीं, बल्कि एक रणनीतिक पुनर्नियोजन के रूप में देखा जा रहा है।
सुधांश पंत का कार्यकाल फरवरी 2027 तक था, यानी उन्होंने रिटायरमेंट से करीब 13 महीने पहले ही मुख्य सचिव पद छोड़ दिया। प्रशासनिक दृष्टि से यह फैसला कई संकेत देता है — खासकर तब जब राज्य में मंत्रिमंडल विस्तार और अन्य ब्यूरोक्रेटिक फेरबदल की चर्चाएं तेज हैं। यह स्पष्ट है कि पंत का दिल्ली लौटना राजस्थान की नौकरशाही और राजनीति दोनों के समीकरणों में नया अध्याय खोल सकता है।