रायपुर। देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन राजस्थान-मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे गांवों के लिए विकास अब भी एक सपना बना हुआ है। झालावाड़ जिले की ग्राम पंचायत फतेहगढ़ के अंतर्गत आने वाले खेजरपुर, कचरा खेड़ी, निंबाहेड़ा और फतेहगढ़ जैसे गांवों के ग्रामीण आज भी कच्चे, कीचड़भरे और जानलेवा रास्तों से गुजरने को मजबूर हैं।
इन गांवों से दैनिक आवागमन के लिए खेजरपुर से पिपलिया खेल बालाजी, फतेहगढ़ से डोंगरगांव, कचरा खेड़ी से सोयत, और निंबाहेड़ा से सोयत तक के मार्गों पर राजस्थान की सीमा तक पक्की सड़कें हैं। लेकिन जैसे ही रास्ता मध्य प्रदेश सीमा में प्रवेश करता है, वहां कच्चा और खस्ताहाल मार्ग शुरू हो जाता है, जिस पर न केवल ग्रामीणों को कीचड़ और पानी में फिसलते हुए चलना पड़ता है, बल्कि हर वर्ष कई लोग चोटिल भी हो जाते हैं।
खेजरपुर से पिपलिया खेड़ा बालाजी के बीच केवल 800 मीटर का हिस्सा मध्य प्रदेश की सीमा में आता है, लेकिन बरसात के दिनों में यह क्षेत्र एक दलदली चुनौती बन जाता है। ग्रामीणों और श्रद्धालुओं द्वारा कई बार शिकायतें करने के बावजूद अब तक समाधान नहीं हुआ है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि राजस्थान सरकार इस पर सीमा से बाहर का मामला बताकर पल्ला झाड़ लेती है, वहीं मध्यप्रदेश सरकार ध्यान नहीं देती।
ग्रामीणों का सवाल है कि जब दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार और केंद्र में भी भाजपा है, तो सीमा पर बसे भारतीय नागरिकों की सुनवाई क्यों नहीं हो रही है? यह समस्या न केवल आवागमन को बाधित करती है, बल्कि बीमार, वृद्ध और बच्चों के लिए जोखिमपूर्ण यात्रा बन जाती है।
ग्रामीणों ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने पहले सड़क निर्माण के लिए बजट और टेंडर प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन विभागीय निष्क्रियता के चलते आज तक कार्य प्रारंभ नहीं हो पाया। प्रशासनिक संवाद और निष्क्रियता ने इस क्षेत्र के विकास को राजनीतिक सीमाओं में जकड़ कर रख दिया है।
ग्रामीणों की मांग है कि सरकारें सीमा की राजनीति से ऊपर उठकर, इन गांवों के लिए सड़क जैसी मूलभूत सुविधा सुनिश्चित करें, ताकि जनजीवन सामान्य हो सके और वे भी गर्व से कह सकें कि हम भी आज़ाद भारत के नागरिक हैं।