जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट में एक अभूतपूर्व स्थिति उस समय उत्पन्न हो गई जब एक सरकारी मामले में सुनवाई के दौरान अदालत को पता चला कि सरकारी वकील की जगह कोई अन्य वकील बहस कर रहा है। यह मामला जयपुर की एक सरकारी संपत्ति से जुड़ी द्वितीय अपील से संबंधित है, जिसमें जस्टिस गणेश राम मीणा की अदालत में अंतिम सुनवाई चल रही थी।
सुनवाई के दौरान जब अदालत ने बहस कर रहे वकील से पूछा कि क्या वे सरकारी वकील हैं, तो उन्होंने साफ कहा कि वे सरकारी अधिवक्ता की ओर से ‘बी-हाफ’ पर बहस कर रहे हैं। इस पर अदालत ने सरकार से गंभीर सवाल पूछा कि "क्या कोई भी वकील सरकारी अधिवक्ता की जगह सरकार की ओर से पैरवी कर सकता है?"
इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए अदालत के निर्देश पर विधि विभाग के प्रमुख शासन सचिव ने एक शपथ पत्र दाखिल किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि किसी भी सरकारी अधिवक्ता की अनुपस्थिति में उसके स्थान पर कोई अन्य अधिवक्ता सरकारी पक्ष की ओर से बहस नहीं कर सकता, जब तक कि उसे विधिवत अधिकृत न किया गया हो।
सरकार ने दिए निर्देश और स्पष्टीकरण
सरकार ने इस मामले में संबंधित सरकारी अधिवक्ता से जवाब-तलब किया है कि उन्होंने अपनी जगह दूसरे अधिवक्ता को बहस के लिए क्यों भेजा। साथ ही सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि: अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) का कोई सहायक वकील उनकी ओर से बहस नहीं कर सकता। वह केवल नोटिस रिसीव करना, स्थगन के लिए आग्रह करना अथवा तारीख लेना जैसे कार्य कर सकता है, लेकिन बहस नहीं। सरकार ने अपने जवाब में इस संबंध में पूर्व में जारी सर्कुलर भी संलग्न किए हैं।
यह घटना सरकारी विधि व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता की ओर संकेत करती है। कोर्ट के हस्तक्षेप और विधि विभाग की स्पष्टता से यह भी साफ हुआ है कि अब से बिना अधिकृत नामांकन के कोई भी वकील सरकारी मामलों में बहस नहीं कर सकेगा।