Saturday, 19 April 2025

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की सुप्रीम कोर्ट को कड़ी आपत्ति-‘कोर्ट राष्ट्रपति को नहीं दे सकती आदेश, ’जज कर रहे हैं सुपर पार्लियामेंट की तरह बर्ताव


उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की सुप्रीम कोर्ट को कड़ी आपत्ति-‘कोर्ट राष्ट्रपति को नहीं दे सकती आदेश, ’जज कर रहे हैं सुपर पार्लियामेंट की तरह बर्ताव

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की उस हालिया टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने की सलाह दी गई थी। उन्होंने कहा कि “कोई अदालत राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती।”

धनखड़ ने यह भी कहा कि,"संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार, अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के विरुद्ध 24x7 न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है।"उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि "जज आजकल सुपर पार्लियामेंट की तरह बर्ताव कर रहे हैं।"

पृष्ठभूमि: सुप्रीम कोर्ट बनाम राज्यपाल विवाद

उपराष्ट्रपति की यह प्रतिक्रिया 8 अप्रैल 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आई है, जिसमें तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल विवाद में न्यायालय ने राज्यपाल की शक्तियों की सीमा तय की थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि“राज्यपाल के पास वीटो पावर नहीं है। राज्यपाल द्वारा सरकार के 10 विधेयकों को रोके जाना असंवैधानिक और अवैध है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल का कार्य संसद या विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर संवैधानिक रूप से त्वरित निर्णय देना है, न कि उन्हें अनिश्चितकाल के लिए रोकना।

धनखड़ का तीखा तंज: शक्तियों की सीमा जरूरी

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अदालतों को चेताते हुए कहा कि न्यायपालिका को अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाएं समझनी होंगी। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में सत्ता के तीन स्तंभों— विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका— के बीच संतुलन आवश्यक है, न कि प्रतिस्पर्धा।

धनखड़ पहले भी कई बार न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन इस बार उनका बयान संविधान के सर्वोच्च पदों की गरिमा और सीमाओं को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दे सकता है।

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