जयपुर। राज्य विधानसभा के हालिया बजट सत्र में पारित चार अहम विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने बुधवार को अधिसूचना जारी करते हुए इन चारों विधेयकों को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया। इनमें से दो विधेयक व्यापक राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव वाले माने जा रहे हैं — लोकतंत्र सेनानी सम्मान से जुड़ा कानून और कुलपति का नाम बदलकर "कुलगुरु" करने वाला संशोधन।
इस विधेयक के तहत आपातकाल (1975-77) के दौरान मीसा और डीआईआर के तहत गिरफ्तार लोकतंत्र सेनानियों को विधिक मान्यता के साथ सम्मान प्रदान किया जाएगा।
वर्तमान में 1140 लोकतंत्र सेनानी या उनके आश्रित इस दायरे में हैं।इन्हें ₹20,000 मासिक पेंशन, ₹4,000 चिकित्सा भत्ता, और रोडवेज बसों में निशुल्क यात्रा का लाभ मिलेगा। मृत्यु के पश्चात यह सुविधाएं जीवनपर्यंत आश्रित पत्नी/पति को दी जाएंगी।इन्हें राष्ट्रीय पर्वों में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाएगा।
पहले यह सुविधाएं नियमों के तहत दी जा रही थीं, जिन्हें कांग्रेस सरकार ने 2019 में निरस्त कर दिया था। अब भाजपा सरकार ने इन्हें विधिक रूप देकर बहाल कर दिया है।
इस अधिनियम के माध्यम से राज्य में 45 अप्रचलित एवं निष्क्रिय कानूनों को समाप्त कर दिया गया है, जिनमें अधिकांश पंचायतीराज विभाग से संबंधित थे। सरकार का दावा है कि इससे प्रशासनिक प्रक्रिया सरल होगी और जटिलताओं में कमी आएगी।
राज्य के नगरीय सुधार न्यासों एवं विकास प्राधिकरणों में अब न्यायाधीशों की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं रहेगी।यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम निर्देश के अनुरूप किया गया है।इससे जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर और उदयपुर जैसे शहरों में न्यायिक पदों की बाध्यता समाप्त हो गई है।सरकार अब एक समान सेवा शर्तें निर्धारित कर सकेगी।
राज्य की 33 सरकारी विश्वविद्यालयों में अब ‘कुलपति’ को ‘कुलगुरु’ और ‘प्रतिकुलपति’ को ‘प्रति कुलगुरु’ कहा जाएगा।यह परिवर्तन सांस्कृतिक परंपरा और गुरुकुल व्यवस्था की भावना को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
हालांकि अंग्रेज़ी में वाइस चांसलर (Vice Chancellor) और Pro Vice Chancellor ही उपयोग में रहेगा।सरकार का कहना है कि “गुरु विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में मार्गदर्शक होता है, और विश्वविद्यालयों के प्रमुख को कुलगुरु कहा जाना अधिक उचित होगा।”