हाईकोर्ट की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि गुजरात हाईकोर्ट ने मेडिकल आधारों की पहले ही जांच कर ली है, ऐसे में उनकी दोबारा जांच की आवश्यकता नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया कि अंतरिम जमानत न देने के लिए कोई ठोस आधार नहीं मिला, इसलिए राहत दी जाती है।
पीड़ित पक्ष के वकील पीसी सोलंकी ने आरोप लगाया कि आसाराम ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई शर्तों का उल्लंघन करते हुए प्रवचन किया। इस पर कोर्ट ने दोनों पक्षों से शपथ पत्र (एफिडेविट) मांगा।
आसाराम की ओर से वकील निशांत बोड़ा ने अदालत में शपथ पत्र पेश कर कहा कि किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं हुआ है। वहीं, सरकार की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि प्रवचन का कोई सार्वजनिक आयोजन नहीं हुआ, केवल कुछ साधकों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात हुई।
जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस विनीत कुमार की खंडपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश पारित करते हुए कहा कि सरकार की जांच रिपोर्ट में यह बात सामने नहीं आई कि आसाराम ने किसी सार्वजनिक स्थान पर प्रवचन किया।
1 अप्रैल को अंतरिम जमानत अवधि पूरी होने पर आसाराम ने औपचारिक रूप से सरेंडर किया, लेकिन उसी रात वह एक निजी अस्पताल में भर्ती हो गया, जहां वह फिलहाल भर्ती है। अब कोर्ट के आदेश के अनुसार, 1 जुलाई 2025 तक उसे अंतरिम जमानत मिली है।