राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सोमवार को परकोटे के आवासीय इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियों के चलते चिह्नित किए गए 19 भवनों के मामले में 7 मार्च को दिए गए यथास्थिति आदेश को खत्म कर दिया।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इन भवनों को सील करने का आदेश हाईकोर्ट की समानांतर खंडपीठ द्वारा दिया गया था, इसलिए उस आदेश में किसी भी प्रकार का दखल नहीं दिया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश एम.एम. श्रीवास्तव और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि यदि प्रभावित भवन मालिकों को राहत चाहिए, तो वे उसी खंडपीठ के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
यह विवाद हाईकोर्ट के स्वप्रेरित प्रसंज्ञान (Suo Motu Cognizance) मामले से जुड़ा है, जिसमें रिहायशी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियों को लेकर कार्रवाई की गई थी।
प्रभावित भवन मालिकों ने कोर्ट में दलील दी थी कि 25 फरवरी को दिए गए आदेश की रिपोर्ट गलत तथ्यों पर आधारित है, इसलिए उस आदेश की समीक्षा या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का समय दिया जाए। साथ ही 7 मार्च के यथास्थिति आदेश को बरकरार रखने की मांग की गई।
हालांकि, खंडपीठ ने इसे समानांतर खंडपीठ का आदेश बताते हुए उसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट द्वारा प्रसंज्ञान लेने के बाद नगर निगम ने परकोटे क्षेत्र के भवनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था। इनमें से 19 भवनों को व्यावसायिक गतिविधियों के कारण चिह्नित कर कार्रवाई की गई थी।
अब प्रभावित भवन मालिकों के पास सुप्रीम कोर्ट या समानांतर खंडपीठ में जाने का ही विकल्प बचा है।