दीपावली का पर्व इस वर्ष 31 अक्टूबर को प्रमुखता से मनाया जाएगा, जबकि कुछ स्थानों पर 1 नवंबर को भी दीपावली पूजन का आयोजन किया जाएगा। दिवाली पूजन के लिए शुभ मुहूर्त में अंतर है, जहां एक दिन 1 घंटे 45 मिनट और दूसरे दिन केवल 41 मिनट का शुभ समय रहेगा।
जिन स्थानों पर 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई जाएगी, वहां 1 नवंबर को स्नान-दान की कार्तिक अमावस्या का आयोजन होगा। वहीं, कुछ जिलों में 1 नवंबर को दिवाली पूजन का मुहूर्त निर्धारित है, जहां 30 और 31 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि मानी गई है।
31 अक्टूबर को मुहूर्त:
1 नवंबर को मुहूर्त:
दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा और भैया दूज का विशेष महत्व
दीपोत्सव के बाद गोवर्धन पूजा का पर्व श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 8:03 से 9:26 तक शुभ का चौघड़िया रहेगा। वहीं, दोपहर 1:33 से 4:17 तक लाभ और अमृत का चौघड़िया है। प्रदोष काल का संकल्प सूर्यास्त के बाद 5:41 से 8:05 तक रहेगा।
भैया दूज:
भैया दूज का पर्व 3 नवंबर को मनाया जाएगा, जिसमें भाई-बहन के प्रेम और समर्पण का विशेष महत्व होता है। इस दिन चित्रगुप्त पूजा, कलम-दवात पूजा, और विश्वकर्मा पूजा की जाती है। इसका शुभ मुहूर्त प्रातः 8:04 से 9:26 तक चर का चौघड़िया रहेगा। इसके बाद लाभ और अमृत का चौघड़िया 9:26 से 12:10 तक और दोपहर 1:32 से 2:55 तक शुभ का चौघड़िया है।
स्नान और शुद्धिकरण: सबसे पहले खुद पर और पूजा सामग्री पर जल छिड़ककर शुद्धिकरण करें। अपने हाथों में तीन बार जल लें, उसे पी लें और चौथी बार हाथ धो लें।
मूर्तियों की स्थापना: चौकी पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं, लाल कपड़ा बिछाएं और भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, भगवान कुबेर और मां सरस्वती की मूर्तियों को स्थापित करें।
दीप जलाएं: लक्ष्मी पूजन के दौरान दीप प्रज्वलित करना शुभ माना जाता है। एक बड़ा दीप और 11 छोटे दीप जलाएं।
संकल्प: पूजा आरंभ करने से पहले संकल्प लें। संकल्प में अपने मन की शुद्धि और देवी लक्ष्मी का स्वागत करने का भाव रखें।
भगवान गणेश का ध्यान: सबसे पहले गणपति का ध्यान करें क्योंकि वे सभी कार्यों के विध्नहर्ता माने जाते हैं।
माता लक्ष्मी और अन्य देवताओं का स्मरण: गणेश के बाद माता लक्ष्मी, भगवान कुबेर और मां सरस्वती का ध्यान करें। इसके बाद, कलश का ध्यान करते हुए उसे जल से भरकर मूर्तियों के सामने रखें।
पूजन सामग्री का प्रयोग:
पूजन के दौरान हर देवता के लिए अलग-अलग मंत्र और प्रार्थना का उपयोग करें। मंत्रों के साथ भावपूर्वक पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। पूजा समाप्त होने के बाद आरती करें और सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें। प्रसाद वितरण के साथ दिवाली का पूजन विधिपूर्वक समाप्त करें।