आयुर्वेद में सोरायसिस का इलाज प्राकृतिक और हर्बल चिकित्सा के माध्यम से किया जाता है, जो शरीर के दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने पर आधारित है। सोरायसिस एक जटिल त्वचा रोग है, और इसके सही कारण का पता नहीं चल पाया है, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार यह रोग वात, पित्त और कफ के असंतुलन से उत्पन्न होता है।
आयुर्वेदिक इलाज के मुख्य तत्व:
पंचकर्म चिकित्सा: पंचकर्म आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण उपचार है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है। इसमें विशेष रूप से बस्ती (एनिमा), वमन (उल्टी) और रक्तमोक्षण (रक्त शोधन) जैसे उपचार शामिल होते हैं, जो शरीर को शुद्ध करते हैं और दोषों का संतुलन बहाल करते हैं।
हर्बल औषधियाँ: आयुर्वेदिक औषधियाँ जैसे कि नीम, गुग्गुल, आंवला, हल्दी, तुलसी आदि का उपयोग सोरायसिस के इलाज में किया जाता है। ये औषधियाँ त्वचा को शुद्ध करती हैं, सूजन को कम करती हैं और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती हैं।
आहार और जीवनशैली: आयुर्वेद में आहार और जीवनशैली का बहुत महत्व है। सोरायसिस के मरीजों को तली-भुनी, मसालेदार और गरम प्रकृति की चीजों से बचना चाहिए। आहार में हरी सब्जियाँ, ताजे फल, साबुत अनाज और हल्के मसाले शामिल करने की सलाह दी जाती है।
योग और ध्यान: योग और ध्यान से शरीर में तनाव और मानसिक दबाव कम होता है, जिससे सोरायसिस के लक्षणों में कमी आती है। विशेष रूप से प्राणायाम और ध्यान त्वचा और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।
त्वचा की देखभाल: नारियल तेल, नीम का तेल, और एलोवेरा जैसी प्राकृतिक चीज़ों का उपयोग त्वचा को मॉइस्चराइज करने और संक्रमण से बचाने के लिए किया जा सकता है। त्वचा को हमेशा साफ और सूखा रखने पर जोर दिया जाता है।
सोरायसिस के लक्षण:
त्वचा पर सफेद धब्बे
खुजली और जलन
त्वचा का लाल होना
त्वचा का पपड़ीदार होना
सूजन और जलन
सोरायसिस के संभावित कारण:
वात, पित्त और कफ का असंतुलन
त्वचा में अशुद्धता
अनुचित आहार और जीवनशैली
तनाव और मानसिक दबाव
नोट:
आयुर्वेदिक उपचार से पहले किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें, ताकि आपको उचित चिकित्सा और आहार योजना मिल सके। सोरायसिस का इलाज लंबा हो सकता है, लेकिन आयुर्वेदिक उपायों से रोग के लक्षणों में कमी आ सकती है और त्वचा की सेहत बेहतर हो सकती है।
डॉ. पीयूष त्रिवेदी, आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी प्रभारी, राजस्थान विधान सभा, जयपुर M. NO: 98280 11871