पितृ पक्ष, सनातन धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण समय माना जाता है। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म किए जाते हैं, जिनसे पितरों को मोक्ष मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष में पितृलोक से पूर्वज धरती पर आते हैं और श्राद्ध प्राप्त कर प्रसन्न होते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। इस वर्ष पितृ पक्ष 17 सितंबर, पूर्णिमा से शुरू होकर 02 अक्टूबर, अमावस्या तक चलेगा।
आचार्य अशोक पांडे के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष का आरंभ 17 सितंबर को हो रहा है और 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। इस दौरान पितरों के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष में तर्पण और श्राद्ध कर्म करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। यह पितरों को श्रद्धांजलि देने का सबसे शुभ समय माना जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
श्राद्ध के प्रतीक: श्राद्ध कर्म में कुश, तिल, गाय, कौवा, और कुत्ते का विशेष महत्व होता है। कुशा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास माना गया है। कौवा यम का प्रतीक होता है और गाय पितरों को वैतरणी पार कराने में सहायक मानी जाती है।
ब्राह्मणों का महत्व: श्राद्ध कर्म में योग्य और विद्वान ब्राह्मणों का चुनाव अत्यंत आवश्यक होता है। पितरों की पूजा के दौरान पवित्रता, शील और सद्गुणों से युक्त ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान करना श्राद्धकर्ता के लिए लाभकारी होता है।
पितृ पक्ष में श्राद्धकर्ता को कुछ विशेष कार्यों से बचना चाहिए, जैसे कि:
श्राद्ध के अंत में क्षमा प्रार्थना करना श्राद्धकर्ता के लिए अत्यंत आवश्यक होता है, ताकि कोई अनजाने में हुई गलती पितरों की पूजा में विघ्न न डाले।
पितृ पक्ष का समय पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान सही विधि से श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की प्रसन्नता प्राप्त होती है, और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।