Saturday, 19 July 2025

अजमेर दरगाह बनाम शिव मंदिर विवाद: हाईकोर्ट में सुनवाई टली, 30 अगस्त को होगी सुनवाई


अजमेर दरगाह बनाम शिव मंदिर विवाद: हाईकोर्ट में सुनवाई टली, 30 अगस्त को होगी सुनवाई

अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर हिंदू सेना द्वारा दायर याचिका में शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। कोर्ट में सुनवाई टल गई है और अब अगली तारीख 30 अगस्त 2025 तय की गई है।

अजमेर जिले की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह एक बार फिर विवाद के केंद्र में है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका के चलते यह मामला एक संवेदनशील धार्मिक और कानूनी बहस का रूप ले चुका है। शनिवार को इस प्रकरण में राजस्थान हाईकोर्ट में सुनवाई प्रस्तावित थी, लेकिन न्यायाधीश के अवकाश और नगर निगम कर्मचारियों के न्यायिक कार्य बहिष्कार के कारण यह टाल दी गई। अब अगली सुनवाई 30 अगस्त 2025 को होगी।

विवाद की जड़ में हिंदू सेना द्वारा किया गया यह दावा है कि अजमेर दरगाह परिसर में एक प्राचीन संकट मोचन महादेव मंदिर मौजूद था, जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दरगाह में परिवर्तित किया गया। याचिका में ऐतिहासिक प्रमाण, नक्शे, पुरानी तस्वीरें और दस्तावेज पेश किए गए हैं और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से स्थल का सर्वे कराने की मांग की गई है। साथ ही हिंदू पक्ष ने वहां पूजा-अर्चना की अनुमति देने की भी मांग की है।

यह याचिका 27 नवम्बर 2024 को अजमेर सिविल कोर्ट द्वारा स्वीकार की गई थी, जिसके पश्चात दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और ASI को नोटिस जारी किए गए। मामला बढ़ती संवेदनशीलता के चलते प्रशासन ने अजमेर में विशेष सुरक्षा बंदोबस्त किए हैं। कोर्ट परिसर के आसपास अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है और शहर भर में सतर्कता बढ़ा दी गई है।

वहीं, दरगाह कमेटी और मुस्लिम संगठनों, विशेष रूप से अंजुमन सैयद जादगान, ने इस याचिका का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह सांप्रदायिक सौहार्द को भंग करने की साजिश है। उन्होंने कोर्ट में यह दलील दी है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act) इस स्थल पर लागू होता है, जिससे 15 अगस्त 1947 के बाद धार्मिक स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता का तर्क है कि यह अधिनियम दरगाह पर लागू नहीं होता, क्योंकि यह कोई पूजा स्थल नहीं बल्कि एक मजार है। उनका दावा है कि यह हिंदू आस्था के प्राचीन केंद्र के ऊपर बना है और संविधान के तहत हिंदुओं को वहां पूजा करने का अधिकार मिलना चाहिए।

यह मामला सिर्फ कानूनी दृष्टि से नहीं बल्कि धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी गहरा प्रभाव डालने वाला है। अदालत के आगामी फैसले पर संपूर्ण देश की निगाहें टिकी हुई हैं।

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