जयपुर। नेट थिएट की रंगमंचीय प्रस्तुतियों की श्रंखला में आज प्रोग्रेसिव फॉर्म द्वारा डॉ. संजीव चौधरी रचित और डॉ. गिरीश कुमार यादव निर्देशित नाटक ‘जंबूरा’ का प्रभावशाली मंचन किया गया। यह नाटक संस्कारविहीन होते समाज, सत्ता की भूख और नैतिक पतन जैसे मुद्दों पर गहरी टिप्पणी करता है।
नेट थिएट के समन्वयक राजेन्द्र शर्मा ‘राजू’ ने बताया कि मंचन में राशिक परिहार, प्रवीण लश्कर, विवेक जाखड़, सिद्धि पांडे, मोहित सिंघल, फैजान खान, और राहुल कुमावत जैसे कलाकारों ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा। नाटक का हर दृश्य सामाजिक चेतना को झकझोरने वाला था।
नाटक का सारांश: “जंबूरा” की कथा आदिकाल से आरंभ होती है — जब न सत्य था, न असत्य। मानव ने पशु प्रवृत्तियों के साथ जीवन की शुरुआत की, लेकिन समय के साथ उसने सभ्यता, नैतिकता, और संस्कारों को अपनाया। फिर वह धर्म और सहअस्तित्व की ओर बढ़ा।परंतु धीरे-धीरे यही मनुष्य सत्ता और स्वार्थ की भूख में विषैला प्राणी बन गया। अब वह दूसरे मनुष्यों का शिकार करने लगा है — ठीक वैसे ही जैसे वह कभी पशुओं का करता था।
नाटक दर्शकों से सवाल करता है —
क्या हम फिर उसी संस्कारविहीन आदिकाल की ओर लौट रहे हैं?
क्या सम्मान, नैतिकता और मानवता को पुनः जीवित किया जा सकता है?
तकनीकी पक्ष:वेशभूषा: गरिमा सिंह राजावत,मंच सज्जा: विवेक जाखड़, फैजान खान,पार्श्व संगीत: मोहित सिंघल, निशांत साहू,प्रकाश व्यवस्था: सावन कुमार जांगिड़,कैमरा और लाइट्स: मनोज स्वामी,कार्यक्रम संयोजक: नवल डांगी
नाटक न केवल दर्शकों को दृश्यात्मक आनंद देता है, बल्कि उन्हें आत्मावलोकन और विचार मंथन के लिए भी प्रेरित करता है। "जंबूरा" आज के सामाजिक परिदृश्य पर एक सशक्त और विचारोत्तेजक हस्तक्षेप बनकर उभरा।